फ़ॉलोअर

मंगलवार, 25 मई 2010

ऐ सुनो !

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती शिखा वार्ष्णेय जी की एक कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

सुनो! पहले जब तुम रूठ जाया करते थे न,
यूँ ही किसी बेकार सी बात पर
मैं भी बेहाल हो जाया करती थी
चैन ही नहीं आता था
मनाती फिरती थी तुम्हें
नए नए तरीके खोज के
कभी वेवजह करवट बदल कर
कभी भूख नहीं है, ये कह कर
अंत में राम बाण था मेरे पास
अचानक हाथ कट जाने का नाटक ..
तब तुम झट से मेरी उंगली
रख लेते थे अपने मुहँ में
और खिलखिला कर हंस पड़ती थी मैं..
फिर तुम भी झूठ मूठ का गुस्सा कर
ठहाका लगा दिया करते थे।
पर अब न जाने क्यों ....
.न तुम रुठते हो
न मैं मनाती हूँ
दोनों उलझे हैं
अपनी अपनी दिनचर्या में
शायद रिश्ते अब
परिपक्व हो गए हैं हमारे
आज फिर सब्जी काटते वक़्त
हाथ कट गया है
ऐ सुनो!
तुम आज फिर रूठ जाओ न
एक बार फिर
मनाने को जी करता है !!
*******************************************************************************
नाम- शिखा वार्ष्णेय / moscow state university से गोल्ड मैडल के साथ T V Journalism में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चेनेंल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया ,हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेजी ,और रुसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.वर्तमान में लन्दन में रहकर स्वतंत्र लेखन जारी है.अंतर्जाल पर स्पंदन (SPANDAN)के माध्यम से सक्रियता.

गुरुवार, 20 मई 2010

प्यार का सार

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रश्मि प्रभा जी की एक कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

दस्तकें यादों की
सोने नहीं देतीं
दरवाज़े का पल्ला
शोर करता है
खट खट खट खट...
सांकल ही नहीं
तो हवाएँ नम सी
यादों की सिहरन बन
अन्दर आ जाती हैं
पत्तों की खड़- खड़
मायूस कर जाती हैं !
कुछ पन्ने मुड़े-तुड़े लेकर
अरमानों की आँखें खुली हैं
एक ख़त लिख दूँ.....
संभव है दस्तकों की रूह को
चैन आ जाए
हवाएँ एक लोरी थमा जाए
भीगे पन्ने
प्यार का सार बन जायें !
****************************************************************************

नाम- रश्मि प्रभा
स्नातक - हिंदी प्रतिष्ठा
रूचि- शब्दों के साथ जीना
प्रकाशन- 'कादम्बिनी', 'अर्गला', वोमेन ऑन टॉप', 'पुरवाई '(यूके से प्रकाशित पत्रिका), 'जनसत्ता' आदि में रचनाएँ प्रकाशित, हिन्दयुग्म में ऑनलाइन कवि-सम्मलेन सञ्चालन.
प्रकाशित कृतियाँ- शब्दों का रिश्ता (काव्य-संग्रह), अनमोल संचयन (काव्य-संग्रह का संपादन)
मेरे बारे में- सौभाग्य मेरा की मैं कवि पन्त की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की बेटी हूँ और मेरा नामकरण स्वर्गीय सुमित्रा नंदन पन्त ने किया और मेरे नाम के साथ अपनी स्व रचित पंक्तियाँ मेरे नाम की..."सुन्दर जीवन का क्रम रे, सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन" , शब्दों की पांडुलिपि मुझे विरासत मे मिली है. अगर शब्दों की धनी मैं ना होती तो मेरा मन, मेरे विचार मेरे अन्दर दम तोड़ देते...मेरा मन जहाँ तक जाता है, मेरे शब्द उसके अभिव्यक्ति बन जाते हैं, यकीनन, ये शब्द ही मेरा सुकून हैं. अंतर्जाल पर मेरी भावनाएं के माध्यम से सक्रियता.

शुक्रवार, 14 मई 2010

सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं

एक तरफ प्यार की अनुभूतियाँ हैं तो वहीँ इस प्यार का सौदा करने वाले भी पैदा हो गए हैं. रिश्ते-नाते-सम्बन्ध सभी कई बार जितने अछे लगते हैं, दूसरे ही क्षण वे बेगाने हो जाते हैं. कहीं पंचायतें प्यार का गला घोंट रहीं हैं तो कहीं आनर किलिंग के नाम पर प्यार की आवाज़ बंद कर दी जा रही है. कई बार तो प्रेम को मकड़जाल बनाकर अपने करीबी ही इसकी अस्मत लूट लेते हैं. ऐसे में डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी यदि कहते हैं कि सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं तो कई बार सच भी लगता है. इन्हीं भावों को लिए आज डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी की ये कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।

न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,
भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,
ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

वो सास से झगड़ती, ससुरे को डाँटती है,
घर की बहू किसी का, सुख-दुख न बाटँती है,
दशरथ, जनक से ज्यादा बेकार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।

जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं,
माँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं,
कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
****************************************************************************
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
जन्म- 4 फरवरी, 1951 (नजीबाबाद-उत्तरप्रदेश)
1975 से खटीमा (उत्तराखण्ड) में स्थायी निवास।
राजनीति- काँग्रेस सेवादल से राजनीति में कदम रखा।
केवल काँग्रेस से जुड़ाव रहा और नगर से लेकर
जिला तथा प्रदेश के विभिन्न पदों पर कार्य किया।
शिक्षा
- एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)
तकनीकी शिक्षाः आयुर्वेद स्नातक
सदस्य
- अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार,
(सन् 2005 से 2008 तक)
उच्चारण पत्रिका का सम्पादन
(सन् 1996 से 2004 तक)
साहित्यिक अभिरुचियाँ-
1965 से लिखना प्रारम्भ किया जो आज तक जारी है।
व्यवसाय- समस्त वात-रोगों की आयुर्वेदिक पद्धति से चिकित्सा करता हूँ।
1984 से खटीमा में निजी विद्यालय का संचालक/प्रबन्धक हूँ।
अंतर्जाल पर अपने मुख्य ब्लॉग उच्चारण के माध्यम से सक्रिय.
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
टनकपुर रोड, खटीमा,
ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत - 262308.
फोनः05943-250207, 09368499921, 09997996437

रविवार, 9 मई 2010

एक अलग एहसास

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता विनोद कुमार पांडेय का एक प्रेम-गीत. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

नित पुष्प खिला कर,खुशियों के,
मन बगिया महकाया तुमने,
आँखों के आँसू लूट लिये,
हँसना सिखलाया तुमने,
सूना,वीरान,अधूरा था,
तुमसे मिलकर परिपूर्ण हुआ,
दिल के आँगन में तुम आई,
जीवन मेरा संपूर्ण हुआ,

किस मन से तुझको विदा करूँ,
तुम ही खुद मुझको बतलाओ,
मैं कैसे कह दूँ तुम जाओ.

मैं एक अकेला राही था,
संघर्ष निहित जीवन पथ पर,
तुम जब से हाथ बढ़ायी हो,
यह धरती भी लगती अम्बर,
व्याकुल नयनों की आस हो तुम,
मेरी पूजा तुम,विश्वास हो तुम,
हर सुबह तुम्ही से रौशन है,
हर एक पल की एहसास हो तुम,

एहसासों का मत दमन करो,
विश्वासों को मत दफ़नाओं,
मैं कैसे कह दूँ, तुम जाओ,

सब बंद घरों में क़ैद पड़े,
मैं किससे व्यथा सुनाऊँगा,
सुख में तो देखो भीड़ पड़ी,
दुख किससे कहने जाऊँगा,
बरसों तक साथ निभाया है,
अब ऐसे मुझको मत छोड़ो,
हम संग विदा लेंगे जग से,
अपने वादों को मत तोडो,

मत बूझो मेरे मन को यूँ,
मत ऐसे कह कर तड़पाओ,
मैं कैसे कह दूँ, तुम जाओ.
***************************************************************************
नाम: विनोद कुमार पांडेय
जन्म स्थान: वाराणसी( उत्तर प्रदेश)
कार्यस्थल: नोएडा( उत्तर प्रदेश)
प्रारंभिक शिक्षादीक्षा वाराणसी से संपन्न करने के पश्चात नोएडा के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से एम.सी.ए. करने के बाद नोएडा में ही पिछले 2 साल से एक सॉफ़्टवेयर कंपनी मे इंजीनियर के पद पर कार्य कर रहा हूँ..खुद को गैर पेशेवर कह सकता हूँ, परंतु ऐसा लगता है की शायद साहित्य की जननी काशी की धरती पर पला बढ़ा होने के नाते साहित्य और हिन्दी से एक भावनात्मक रिश्ता जुड़ा हुआ प्रतीत होता है.लिखने और पढ़ने में सक्रियता २ साल से,पिछले 1 वर्ष से ब्लॉग पर सक्रिय,हास्य कविता और व्यंग में विशेष लेखन रूचि,अब तक 5० से ज़्यादा कविताओं और ग़ज़लों की रचनाएँ,व्यंगकार के रूप में भी किस्मत आजमाया और सफलता भी मिली,कई व्यंग दिल्ली के समाचार पत्रों में प्रकाशित भी हुए और काफ़ी पसंद किए गये एवं नोएडा और आसपास के क्षेत्रों के कई कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ,फिर भी इसे अभी लेखनी की शुरुआत कहता हूँ और उम्मीद करता हूँ की भविष्य में हिन्दी और साहित्य के लिए हमेशा समर्पित रहूँगा.लोगों का मनोरंजन करना और साथ ही साथ अपनी रचनाओं के द्वारा कुछ अच्छे सार्थक बातों का प्रवाह करना भी मेरा एक खास उद्देश्य होता है.अंतर्जाल पर मुस्कुराते पल-कुछ सच कुछ सपने के माध्यम से सक्रिय. ई-मेल- voice.vinod@gmail.com

मंगलवार, 4 मई 2010

ग़ज़ल

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती जय कृष्ण राय 'तुषार' की ग़ज़ल. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

सुहाना हो भले मौसम मगर अच्छा नहीं लगता
सफर में तुम नहीं हो तो सफर अच्छा नहीं लगता
फिजा में रंग होली के हों या मंजर दीवाली के
मगर जब तुम नहीं होते ये घर अच्छा नहीं लगता
जहाँ बचपन की यादें हों कभी माँ से बिछड़ने की
भले ही खूबसूरत हो शहर अच्छा नहीं लगता
परिन्दे जिसकी शाखों पर कभी नग्में नहीं गाते
हरापन चाहे जितना हो शजर अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे हुश्न का ये रंग सादा खूबसूरत है
हिना के रंग पर कोई कलर अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे हर हुनर के हो गये हम इस तरह कायल
हमें अपना भी अब कोई हुनर अच्छा नहीं लगता
निगाहें मुंतजिर मेरी सभी रस्तों की है लेकिन
जिधर से तुम नहीं आते उधर अच्छा नहीं लगता

******************************************************************************
जय कृष्ण राय 'तुषार' : (स्वयं के ही शब्दों में) ग्राम-पसिका जिला आज़मगढ़ में जन्मा, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में राज्य विधि अधिकारी के पद पर नियुक्त हुआ। नवगीत, हिन्दी गजल, लेख, साक्षात्कार आदि का लेखन। बीबीसी हिन्दी पत्रिका लंदन, नया ज्ञानोदय, आजकल, आधारशिला, अक्षर पर्व, युगीन काव्या, नये पुराने नव-निकष, शिवम, जनसत्ता वार्षिकांक, गजल के बहाने, शब्द-कारखाना, शब्दिता, हिन्दुस्तानी एकेडेमी पत्रिका, गुफ्‌तगू, स्वतंत्र भारत, दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, आज, अमर उजाला, दैनिक हरिभूमि, अमृत प्रभात, गंगा-जमुना आदि में लेख, कविताएं, गजल आदि प्रकाशित। आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं अन्य प्राइवेट चैनलों से कविताओं का प्रसारण. अंतर्जाल पर छान्दसिक अनुगायन के माध्यम से सक्रियता.
संपर्क -जयकृष्ण राय तुषार,63 जी/7, बेली कालोनी,स्टेनली रोड, इलाहाबाद,
मो0-9415898913, ई-मेल- jkraitushar@gmail.com