'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती जय कृष्ण राय 'तुषार' की ग़ज़ल. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
सुहाना हो भले मौसम मगर अच्छा नहीं लगता
सफर में तुम नहीं हो तो सफर अच्छा नहीं लगता
फिजा में रंग होली के हों या मंजर दीवाली के
मगर जब तुम नहीं होते ये घर अच्छा नहीं लगता
जहाँ बचपन की यादें हों कभी माँ से बिछड़ने की
भले ही खूबसूरत हो शहर अच्छा नहीं लगता
परिन्दे जिसकी शाखों पर कभी नग्में नहीं गाते
हरापन चाहे जितना हो शजर अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे हुश्न का ये रंग सादा खूबसूरत है
हिना के रंग पर कोई कलर अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे हर हुनर के हो गये हम इस तरह कायल
हमें अपना भी अब कोई हुनर अच्छा नहीं लगता
निगाहें मुंतजिर मेरी सभी रस्तों की है लेकिन
जिधर से तुम नहीं आते उधर अच्छा नहीं लगता
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जय कृष्ण राय 'तुषार' : (स्वयं के ही शब्दों में) ग्राम-पसिका जिला आज़मगढ़ में जन्मा, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में राज्य विधि अधिकारी के पद पर नियुक्त हुआ। नवगीत, हिन्दी गजल, लेख, साक्षात्कार आदि का लेखन। बीबीसी हिन्दी पत्रिका लंदन, नया ज्ञानोदय, आजकल, आधारशिला, अक्षर पर्व, युगीन काव्या, नये पुराने नव-निकष, शिवम, जनसत्ता वार्षिकांक, गजल के बहाने, शब्द-कारखाना, शब्दिता, हिन्दुस्तानी एकेडेमी पत्रिका, गुफ्तगू, स्वतंत्र भारत, दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, आज, अमर उजाला, दैनिक हरिभूमि, अमृत प्रभात, गंगा-जमुना आदि में लेख, कविताएं, गजल आदि प्रकाशित। आकाशवाणी, दूरदर्शन एवं अन्य प्राइवेट चैनलों से कविताओं का प्रसारण. अंतर्जाल पर छान्दसिक अनुगायन के माध्यम से सक्रियता.
सुहाना हो भले मौसम मगर अच्छा नहीं लगता
सफर में तुम नहीं हो तो सफर अच्छा नहीं लगता
फिजा में रंग होली के हों या मंजर दीवाली के
मगर जब तुम नहीं होते ये घर अच्छा नहीं लगता
जहाँ बचपन की यादें हों कभी माँ से बिछड़ने की
भले ही खूबसूरत हो शहर अच्छा नहीं लगता
परिन्दे जिसकी शाखों पर कभी नग्में नहीं गाते
हरापन चाहे जितना हो शजर अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे हुश्न का ये रंग सादा खूबसूरत है
हिना के रंग पर कोई कलर अच्छा नहीं लगता
तुम्हारे हर हुनर के हो गये हम इस तरह कायल
हमें अपना भी अब कोई हुनर अच्छा नहीं लगता
निगाहें मुंतजिर मेरी सभी रस्तों की है लेकिन
जिधर से तुम नहीं आते उधर अच्छा नहीं लगता
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संपर्क -जयकृष्ण राय तुषार,63 जी/7, बेली कालोनी,स्टेनली रोड, इलाहाबाद,
मो0-9415898913, ई-मेल- jkraitushar@gmail.com
जहाँ बचपन की यादें हों कभी माँ से बिछड़ने की
जवाब देंहटाएंभले ही खूबसूरत हो शहर अच्छा नहीं लगता
-बहुत खूब!
जिधर से तुम नहीं आते उधर अच्छा नहीं लगता...
जवाब देंहटाएंमगर जब तुम नहीं होते ये घर अच्छा नहीं लगता ...
तुम्हारे हर हुनर के हो गये हम इस तरह कायल
हमें अपना भी अब कोई हुनर अच्छा नहीं लगता..
वाह ...
मनभावन कविता ...!!
तुम्हारे हर हुनर के हो गये हम इस तरह कायल
जवाब देंहटाएंहमें अपना भी अब कोई हुनर अच्छा नहीं लगता
निगाहें मुंतजिर मेरी सभी रस्तों की है लेकिन
जिधर से तुम नहीं आते उधर अच्छा नहीं लगता
....अंतर्मन की सुन्दर अभिव्यक्ति..तुषार जी को बधाई.
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ..शानदार अभिव्यक्तियाँ..तुषार जी को शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल ..शानदार अभिव्यक्तियाँ..तुषार जी को शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब! लाजवाब! हर एक शब्द दिल को छू गयी! बेहद सुन्दर और भावपूर्ण रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति. संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है..मुबारकवाद.
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन..सार्थक सृजन..शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंतुषार जी की ग़ज़ल तो वाकई मन को छूती है...बधाई.
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल..बार-बार पढने का मन करता है.
जवाब देंहटाएंBeautifull....
जवाब देंहटाएंsabko mera naman meri gazal pasand karne ke liye dhanyabad
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रयास..राय जी को शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंतुषार जी,
जवाब देंहटाएंमाँ वाला शे'र ख़ूब बन पड़ा है। जिधर से तुम नहीं आते, हुनर वाला शे'र और घर वाला शे'र भी बरबस खींचते हैं।
ग़ज़ल पूरी अच्छी है, दाद क़बूलें।
जारी रहिए।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएं--
प्यार से ... ... .
मेरा मन मुस्काया!
--
संपादक : सरस पायस
Bahut achchi gazal tusharji
जवाब देंहटाएंमगर जब तुम नहीं होते ये घर अच्छा नहीं लगता ...bahut badhiyaa
जवाब देंहटाएंतुषार जी ,आप की ग़ज़ल उम्दा है .तराशे हुए शेर हैं ,अभिव्यक्ति सार्थक है .बधाई.अभिलाषा को 'सप्तरंगी'ब्लाग के लिए विशेष बधाई.
जवाब देंहटाएंनिगाहें मुंतजिर मेरी सभी रस्तों की है लेकिन
जवाब देंहटाएंजिधर से तुम नहीं आते उधर अच्छा नहीं लगता
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है भाई ....
तुम्हारे हुश्न का ये रंग सादा खूबसूरत है
जवाब देंहटाएंहिना के रंग पर कोई कलर अच्छा नहीं लगता
.....मनभावन ..बहुत सुन्दर ग़ज़ल ..शानदार .