शनिवार, 12 जून 2010

झंकृत

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता कवि कुलवंत सिंह का गीत 'झंकृत'. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

झन - झन झंकृत हृदय आज है
वपु में बजते सभी साज हैं ।
पी आने का मिला भास है
मिटेगा चिर विछोह त्रास है ।

मंद - मंद मादक बयार है
खिल प्रकृति ने किया शृंगार है ।
आनन सरोज अति विलास है
कानन कुसुम मधु उल्लास है ।

अंग - अंग आतप शुमार है
देह नही उर कि पुकार है ।
दंभ, मान, धन सब विकार है
प्रेम ही जीवन आधार है ।

रोम - रोम रस, रुधित राग है
मिला जो तेरा अनुराग है ।
मन सुरभित, तन नित निखार है
नभ - मुक्त, तल नव विस्तार है ।

घन - घन घोर घटा अपार है
संग तुम मेरा अभिसार है ।
अनंत चेतना का निधान है
मिलन हमारा प्रभु विधान है ।


(कुलवंत सिंह जी के जीवन-परिचय के लिए क्लिक करें)

11 टिप्‍पणियां:

  1. कुलवंत सिंह जी के गीत 'झंकृत' ने झंकृत किया ।
    'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग की उदारता वरेण्य है , वंदनीय है ।
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  2. रोम - रोम रस, रुधित राग है
    मिला जो तेरा अनुराग है ।
    मन सुरभित, तन नित निखार है
    नभ - मुक्त, तल नव विस्तार है ।

    बहुत ही भावपूर्ण अभिब्यक्ति
    सप्रेम बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. दंभ, मान, धन सब विकार है
    प्रेम ही जीवन आधार है ...
    सुन्दर ...!!

    जवाब देंहटाएं
  4. घन - घन घोर घटा अपार है
    संग तुम मेरा अभिसार है ।
    अनंत चेतना का निधान है
    मिलन हमारा प्रभु विधान है ।

    ....बहुत सुन्दर कविता...मुबारकवाद.

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  5. कुलवंत जी को इस सुन्दर रचना के लिए बधाई...

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  6. मुझे भी पसंद आई..बधाई.

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  7. मन के तारों को झंकृत कर गई कुलवंत जी की ये अनुपम रचना..बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  8. बेनामीजून 18, 2010 4:12 pm

    मनभावन रचना ..बधाई !!

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