गुरुवार, 12 अगस्त 2010

"क्या फिर ऋतुराज का आगमन हुआ है ?"

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती वन्दना गुप्ता जी की कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

सोमरस -सा
प्राणों को
सिंचित करता
तुम्हारा ये नेह
ज्यों प्रोढ़ता की
दहलीज पर
वसंत का आगमन
नव कोंपल सी
खिलखिलाती
स्निग्ध मुस्कान
ज्यों वीणा के तार
झनझना गए हो
स्नेहसिक्त नयनो से
बहता प्रेम का सागर
ज्यों तूफ़ान कोई
दरिया में
सिमट आया हो
सांसों के तटबंधों
को तोड़ते ज्वार
ज्यों सैलाब किसी
आगोश में
बंध गया हो
प्रेमारस में
भीगे अधर
ज्यों मदिरा कोई
बिखर गयी हो
धडकनों की
ताल पर
थिरकता मन
ज्यों देवालय में
घंटियाँ बज रही हों
आह ! ये कैसा
अनुबंध है प्रेम का
क्या फिर
ऋतुराज का
आगमन हुआ है ?
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(वंदना गुप्ता जी के जीवन-परिचय के लिए क्लिक करें)

11 टिप्‍पणियां:

  1. बस जी प्रेम का ही अनुबंध है जो बसंत बन कर छा गया है

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  2. आकांक्षा जी,
    मेरी कविता को अपने ब्लोग पर आपने स्थान दिया उसके लिये आपकी शुक्रगुजार हूँ।

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  3. जी वंदना जी, आपने सही पहचाना ऋतुराज का आगमन हुआ है। असल में तो वह हमारे अंदर ही रहता है न। अब यह आप पर है कि आप उसे कब कब निहारती हैं,पुकारती हैं।
    बहरहाल सघन अनुभूति की इस रचना में एक लाइन पंक्ति खटकती है। यह है
    -ज्यों प्रोढ़ता की दहलीज पर
    इस कविता में इस पंक्ति का कोई औचित्‍य ही नहीं है।

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  4. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है!
    --
    वन्दना गुप्ता को बहुत-बहुत बधाई!

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  5. सोमरस -सा
    प्राणों को
    सिंचित करता
    तुम्हारा ये नेह......

    itne pyare shabd!!
    bahut pyari rachna!!

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  6. मन और प्रेम का ऋतू से जो सम्बन्ध है, वह अनन्त है. बरखा से , बसंत से सदियों से गुना जा रहा है. बहुत सुन्दर शब्दों में सजा कर प्रस्तुत किया है. बधाई.

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  7. बहुत ही प्यारी रचना है
    पढ़ के मन में हिलोरें उठ गए
    अपना पूरा प्यार ऋतुराज के आगमन के बहाने
    कितनी सरलता से व्यक्त किया है
    सभी अविस्मरनीय पलों को विम्वित किया है
    पढ़ के सकूं मिला

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  8. आह ! ये कैसा
    अनुबंध है प्रेम का
    क्या फिर
    ऋतुराज का
    आगमन हुआ है ?

    .....लगता तो कुछ ऐसा ही है. खूबसूरत रचना.

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  9. बहुत सुंदर कविता ...!!
    मन के ऋतुराज का आगमन करा गयी ...!!!
    शुभकामनाएं ..!!!!

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