मंगलवार, 21 सितंबर 2010

यौवन

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता कवि कुलवंत सिंह का गीत. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

सोने की थाली में यदि
मैं चांदनी भर पाऊँ,
प्रेम रूप पर गोरी तेरे
भर भर हाथ लुटाऊँ।

हवा में घुल पाऊँ यदि
तेरी सांसो मे बस जाऊँ,
धड़कन हृदय की
वक्ष के स्पंदन मैं बन जाऊँ।

अलसाया सा यौवन तेरा
अंग अंग में तरुणाई,
भर लूँ मैं बांहे फ़ैला
बन कर तेरी ही अंगड़ाई।

चंदन बन यदि तन से लिपटूं
महकूँ कुंआरे बदन सा,
मदिरा बन मैं छलकूँ
अलसाये नयनों से प्रीत सा।

स्वछंद-सुवासित-अलकों में
वेणी बन गुंध जाऊँ,
बन नागिन सी लहराती चोटी
कटि स्पर्श सुख पाऊँ।

अरुण अधर कोमल कपोल
बन चंद्र किरन चूम पाऊँ,
सेज मखमली बन
तेरे तन से लिपट जाऊँ।
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( सप्तरंगी प्रेम पर कुलवंत सिंह की अन्य रचनाओं के लिए क्लिक करें)

13 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, अच्छा लिखा आपने..बधाई.

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  2. अरुण अधर कोमल कपोल
    बन चंद्र किरन चूम पाऊँ,
    सेज मखमली बन
    तेरे तन से लिपट जाऊँ।
    ..कुलवंत जी का कवि-मन आजकल खूब तरंगित हो रहा है...मनभावन रचना..बधाई.

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  3. स्वछंद-सुवासित-अलकों में
    वेणी बन गुंध जाऊँ,
    बन नागिन सी लहराती चोटी
    कटि स्पर्श सुख पाऊँ।

    ....इसके आगे क्या कहूँ...उत्तम रचना.

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  4. बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  5. बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  6. बड़ी बेहतरीन कविता और उसकी खूबसूरत प्रस्तुति...बधाई.

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  7. लाजवाब...इस शानदार कविता के लिए बधाई स्वीकारें.

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'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटे रचनाओं को प्रस्तुत करते हैं. जो रचनाकार इसमें भागीदारी चाहते हैं, वे अपनी 2 मौलिक रचनाएँ, जीवन वृत्त, फोटोग्राफ kk_akanksha@yahoo.com पर भेज सकते हैं. रचनाएँ व जीवन वृत्त यूनिकोड फॉण्ट में ही हों.
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