बुधवार, 10 नवंबर 2010

किसी ने कभी लिखा ही नहीं...

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती वंदना गुप्ता जी की कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

मुझे इंतज़ार है
उस एक ख़त का
जिसमें मजमून हो
उन महकते हुए
जज्बातों का
उन सिमटे हुए
अल्फाजों का
उन बिखरे हुए
अहसासों का
जो किसी ने
याद में मेरी
संजोये हों
कुछ न कहना
चाहा हो कभी
मगर फिर भी
हर लफ्ज़ जैसे
दिल के राज़
खोल रहा हो
धडकनों की भी
एक -एक धड़कन
खतों में सुनाई देती हो
आंखों की लाली कर रंग
ख़त के हर लफ्ज़ में
नज़र आता हो
इंतज़ार का हर पल
ज्यूँ ख़त में उतर आया हो
हर शब्द किसी की तड़प का
किस के कुंवारे प्रेम का
किसी के लरजते जज्बातों का
जैसे निनाद करता हो
जिसमें किसी की
प्रतीक्षारत शाम की
उदासी सिमटी हो
आंखों में गुजरी रात का
आलम हो
दिन में चुभते इंतज़ार के
पलों का दीदार हो
किसी के गेसुओं से
टपकती पानी की बूँदें
जलतरंग सुनाती हों
किसी के तबस्सुम में
डूबी ग़ज़ल हो
किसी के बहकते
ज़ज्बातों का रूदन हो
किसी के ख्यालों में
डूबी मदहोशी हो
किसी की सुबह की
मादकता हो
किसी की यादों में
गुजरी शाम की सुगंध हो
हर वो ख्यालात हो
जहाँ सिर्फ़
महबूब का ही ख्वाब हो
प्यार की वो प्यास हो
जहाँ जिस्मों से परे
रूहों के मिलन का
जिक्र हो
हर लफ्ज़ जहाँ
महबूब का ही
अक्स बन गया हो
मुझे इंतज़ार है
उस एक ख़त का
जो किसी ने कभी
लिखा ही नही
किसी ने कभी !!
*****************************************************************************
( सप्तरंगी प्रेम पर वंदना गुप्ता की अन्य रचनाओं के लिए क्लिक करें)

14 टिप्‍पणियां:

  1. हर लफ्ज़ जहाँ
    महबूब का ही
    अक्स बन गया हो
    मुझे इंतज़ार है
    उस एक ख़त का
    जो किसी ने कभी
    लिखा ही नही
    ---
    वन्दना गप्ता जी की कलम से जन्मी एक सुन्दर रचना को आपने प्रकासित किया है!
    लेखिका को बधाई आपको धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. महबूब का ही ख्वाब हो
    प्यार की वो प्यास हो
    जहाँ जिस्मों से परे
    रूहों के मिलन का
    जिक्र हो
    हर लफ्ज़ जहाँ
    महबूब का ही
    अक्स बन गया हो

    बहुत सुन्दर ...भावप्रवण रचना

    जवाब देंहटाएं
  3. आकांक्षा जी अपने ब्लोग पर जगह देने के लिये आपकी हार्दिक आभारी हूं।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्‍दर भावमय प्रस्‍तुति .....वन्‍दना जी को बधाई के आपका आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  5. उस एक ख़त का
    जो किसी ने कभी
    लिखा ही नही
    किसी ने कभी !!

    ....यह भी इक अजीब दास्ताँ है...खूबसूरत भाव..बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  6. रोमांटिक ‘चीज़’ का बेहद रोमांटिक इंतज़ार...ख़ुदा करे कि आपका इंतज़ार ख़त्म हो...आमीन!

    वंदना जी, बहुत इमोशनल रचना है यह...बधाई!

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. बस बस बस....रे बाबा...कितना कुछ चाह लिए आपने एक खत के ज़रिये....इतना टाइम कहाँ है किसी के पास इतना सब इतनी शिद्दत से महसूस करने का और फिर उसके बाद खत लिखने का...उफ़.फ.फ.फ...:):):):)

    लेकिन किन्तु परन्तु पसंद नहीं बहुत पसंद आई आपकी ये इच्छा....ये चाह.:)

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  9. बरास्ते नूतन जी और फिर आकांक्षा जी हम पहुँचे पढ़ने वंदना जी को| भावनाओं का शब्दांकन मनभावन है| पंक्तियों में रवानी भी भरपूर है| एक खत और इतने सारे ज़ज्बात.............. भई वाह|

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  10. @जितेंद्र जी, अनामिका जी, नवीन जी,
    कविता और उसके भाव पसन्द करने के लिये आपकी आभारी हूँ।बहुत बहुत शुक्रिया।

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  11. मुझे इंतज़ार है
    उस एक ख़त का
    जो किसी ने कभी
    लिखा ही नही
    किसी ने कभी !!
    waah! behtareen abhivyakti!!!!
    yah intzaar kitna sahaj hai...
    kaash koi likhe aise patra!
    ab to khair patra koi likhta hi nahi!!!
    vandana ji ko badhai!

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