सोमवार, 15 नवंबर 2010

प्रेयसी

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती कृष्ण कुमार यादव जी की कविता 'प्रेयसी'. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

छोड़ देता हूँ निढाल
अपने को उसकी बाँहों में
बालों में अंगुलियाँ फिराते-फिराते
हर लिया है हर कष्ट को उसने।

एक शिशु की तरह
सिमटा जा रहा हूँ
उसकी जकड़न में
कुछ देर बाद
खत्म हो जाता है
द्वैत का भाव।

गहरी साँसों के बीच
उठती-गिरती धड़कनें
खामोश हो जाती हैं
और मिलने लगती हैं आत्मायें
मानो जन्म-जन्म की प्यासी हों।

ऐसे ही किसी पल में
साकार होता है
एक नव जीवन का स्वप्न।


( कृष्ण कुमार यादव जी के जीवन-परिचय के लिए क्लिक करें)

21 टिप्‍पणियां:

  1. ....गहरी साँसों के बीच
    उठती-गिरती धड़कनें
    खामोश हो जाती हैं
    और मिलने लगती हैं आत्मायें
    मानो जन्म-जन्म की प्यासी हों।....
    sunder abhivaykti.sunder panktiyan...
    badhai yadav ji ko or abhaar aapkey is pryash hetu.

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  2. ऐसे ही किसी पल में
    साकार होता है
    एक नव जीवन का स्वप्न।
    खूबसूरती से व्यक्त भाव..के.के. यादव जी को साधुवाद. !!

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  3. ऐसे ही किसी पल में
    साकार होता है
    एक नव जीवन का स्वप्न।
    खूबसूरती से व्यक्त भाव..के.के. यादव जी को साधुवाद. !!

    जवाब देंहटाएं
  4. खूबसूरत अभिव्यक्तियाँ...बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  5. खूबसूरत भाव खूबसूरत अभिव्यक्ति.

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  6. लाजवाब और भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  7. प्रेयसी कविता पर कुछ कमेन्ट करने की बजाय यही कहूँगा कि यह एहसास करने वाली भावना है. जिस रूप में आपने इसे शब्दों में पिरोया है, वह सिर्फ महसूस की जा सकती है. इस खूबसूरत कविता के लिए के. के. जी को बहुत-बहुत बधाई.

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  8. प्रेम की कोमल भावनाओं को सहेजने का 'सप्तरंगी प्रेम' का प्रयास रंग ला रहा है..शुभकामनायें.

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  9. गहरी साँसों के बीच
    उठती-गिरती धड़कनें
    खामोश हो जाती हैं
    और मिलने लगती हैं आत्मायें
    मानो जन्म-जन्म की प्यासी हों।

    ....भाई के.के. जी, क्या खूब लिखा है आपने. एक-एक शब्द मानो दिल में उतरते जाते हैं.

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  10. आपकी प्रेयसी कविता पढ़कर सुखद लगा. जिस शालीनता के साथ अपने शब्दों का खूबसूरती से इस्तेमाल किया है , उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं. मैंने बहुत सी कवितायेँ पढ़ी हैं, पर आपकी कविता में जो कशिश है वह एक अजीब से अहसास से भर देतीं है....आप यूँ ही लिखतें रहें, ढेर सारी बधाइयाँ !!

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  11. मान्यवर
    नमस्कार
    बहुत सुन्दर
    मेरे बधाई स्वीकारें

    साभार
    अवनीश सिंह चौहान
    पूर्वाभास http://poorvabhas.blogspot.com/

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  12. एक शिशु की तरह
    सिमटा जा रहा हूँ
    उसकी जकड़न में
    कुछ देर बाद
    खत्म हो जाता है
    द्वैत का भाव।

    ..बहुत खूबसूरती से शब्दों का चयन...कोई जवाब नहीं इस अनुपम रचना का.

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  13. अले वाह, यह तो पापा की कविता है.

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  14. .

    छोड़ देता हूँ निढाल
    अपने को उसकी बाँहों में
    बालों में अंगुलियाँ फिराते-फिराते
    हर लिया है हर कष्ट को उसने...

    ---

    बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति।

    .

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  15. छोड़ देता हूँ निढाल
    अपने को उसकी बाँहों में
    बालों में अंगुलियाँ फिराते-फिराते
    हर लिया है हर कष्ट को उसने।

    .....प्यार की सघन अनुभूतियों का सुन्दर चित्रण. के.के. यादव जी को बधाई.

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  16. आकांक्षा जी,
    तहे दिल से आपका शुक्रिया.
    आपके कारण प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाएँ निरंतर पढने को मिल रही हैं.

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  17. कुछ देर बाद
    खत्म हो जाता है
    द्वैत का भाव।

    ....Bahut umda rachna..badhai.

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  18. प्रेयसी भाव का सुन्दर चित्रण..के.के. जी को बधाई इस उम्दा कविता के लिए.

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