सोमवार, 18 अप्रैल 2011

छुअन : संगीता स्वरुप

स्मृति की मञ्जूषा से
एक और पन्ना
निकल आया है .
लिए हाथ में
पढ़ गयी हूँ विस्मृत
सी हुई मैं .

आँखों की लुनाई
छिपी नहीं थी
तुम्हारा वो एकटक देखना
सिहरा सा देता था मुझे
और मैं अक्सर
नज़रें चुरा लेती थी .

प्रातः बेला में
बगीचे में घूमते हुए
तोड़ ही तो लिया था
एक पीला गुलाब मैंने .
और ज्यों ही
केशों में टांकने के लिए
हाथ पीछे किया
कि थाम लिया था
गुलाब तुमने
और कहा कि
फूल क्या खुद
लगाये जाते हैं वेणी में ?
लाओ मैं लगा दूँ
मेरा हाथ
लरज कर रह गया था.
और तुमने
फूल लगाते लगाते ही
जड़ दिया था
एक चुम्बन
मेरी ग्रीवा पर .
आज भी गर्दन पर
तुम्हारे लबों की
छुअन का एहसास है .
******************************************
नाम- संगीता स्वरुप
जन्म- ७ मई १९५३
जन्म स्थान- रुड़की (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा- स्नातकोत्तर (अर्थशास्त्र)
व्यवसाय- गृहणी (पूर्व में केन्द्रीय विद्यालय में शिक्षिका रह चुकी हूँ)
शौक- हिंदी साहित्य पढ़ने का, कुछ टूटा फूटा अभिव्यक्त भी कर लेती हूँ । कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ... मन के भावों को कैसे सब तक पहुँचाऊँ कुछ लिखूं या फिर कुछ गाऊँ । चिंतन हो जब किसी बात पर और मन में मंथन चलता हो उन भावों को लिख कर मैं शब्दों में तिरोहित कर जाऊं । सोच - विचारों की शक्ति जब कुछ उथल -पुथल सा करती हो उन भावों को गढ़ कर मैं अपनी बात सुना जाऊँ जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊं.
निवास स्थान- दिल्ली
ब्लॉग - गीत

20 टिप्‍पणियां:

  1. आज भी गर्दन पर
    तुम्हारे लबों की
    छुअन का एहसास है .

    ...खूबसूरत अहसास...हृदयस्पर्शी कविता..बधाई !!

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  2. अरे वाह ! प्रेम रस में डूबी यह रचना मन को विभोर कर गयी ! बहुत प्यारा सा यह अहसास आपके मन को इसी तरह भिगोता रहे और आप उन दुर्लभ पलों को ऐसे ही सदा जीती रहें यही कामना है ! बहुत ही सुन्दर रच्गना ! बधाई स्वीकार करें !

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  3. प्यारी सी कविता लिखी है...बधाई.

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  4. कोमल अहसासो की सुन्दर अभिव्यक्ति…………भीनी भीनी सी।

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  5. सुन्दर भावों से सजी अनुपम रचना...बधाई.

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  6. फूल क्या खुद
    लगाये जाते हैं वेणी में ?
    लाओ मैं लगा दूँ
    शानदार, बधाई.

    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
    मीडिया की दशा और दिशा पर आंसू बहाएं
    भले को भला कहना भी पाप

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  7. संगीता जी कि यह कविता उनके ब्लॉग और काव्य संलन में भी पढ़ चुकी हूँ .बेहद कोमल अहसासों से लवरेज प्यारी सी रचना सीधे मन को गुदगुदा जाती है.

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  8. प्रेम की यह सुखद अनुभूति और ये क्षण एक धरोहर बनकर हमेशा अंकित रहते हैं. बहुत सुंदर शब्दों में लिखा है.

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  9. आज भी गर्दन पर
    तुम्हारे लबों की
    छुअन का एहसास है ...

    कितने कोमल अहसास..रचना के भाव अंतस को छू जाते हैं..अप्रतिम प्रस्तुति...आभार

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  10. बहुत सुन्दर और भावप्रणव रचना!
    संगीता स्वरूप जी अच्छा लिखती हैं।
    भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  11. बहुत सुन्दर और भावप्रणव रचना!
    संगीता स्वरूप जी अच्छा लिखती हैं।
    भगवान हनुमान जयंती पर आपको हार्दिक शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  12. अनुभूतियों का पार्श्व संगीत अच्छा लगा।

    जवाब देंहटाएं
  13. तुम्हारा वो एकटक देखना
    सिहरा सा देता था मुझे
    और मैं अक्सर
    नज़रें चुरा लेती थी...
    ....मनोभावों की स्वाभाविक और सहज प्रस्तुति...बधाई!
    देवेंद्र गौतम

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  14. तुम्हारा वो एकटक देखना
    सिहरा सा देता था मुझे
    और मैं अक्सर
    नज़रें चुरा लेती थी ...

    खूबसूरत अहसास..

    .

    जवाब देंहटाएं
  15. अद्भुत है छुअन , कमाल का सृजन .

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  16. संगीता स्वरूप जी अच्छा लिखती हैं।
    अप्रतिम प्रस्तुति...आभार

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  17. जब रूठे हुए प्रेमिका के ओंठो पर
    माफ़ी के चाशनी से लिपटी
    प्यार भरे प्रेमी के ओंठ का स्पर्श
    पिघला देती है..
    उसके अभिमान का बरफ
    क्या यही होता है स्पर्श?

    जब शांत पत्नी के कानो के पोरों पर
    होता है पति का कामुक स्पर्श
    कर देता है उसको उद्वेलित
    खिल उठता है उसका रोम रोम
    खिल उठती है सम्पूर्ण नारी...
    क्या यही होता है काफी जीने के लिए उसका स्पर्श
    क्या यही होता है स्पर्श?

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