सोमवार, 13 जून 2011

प्यार का आलम : मानव मेहता

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती मानव मेहता की एक ग़ज़ल. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

चाँद के चेहरे से बदली जो हट गयी,

रात सारी फिर आँखों में कट गयी..


छूना चाहा जब तेरी उड़ती हुई खुशबू को,

सांसें मेरी तेरी साँसों से लिपट गयी..


तुमने छुआ तो रक्स कर उठा बदन मेरा,

मायूसी सारी उम्र की इक पल में छट गयी..


बंद होते खुलते हुए तेरे पलकों के दरम्यान,

ए जाने वफ़ा, मेरी कायनात सिमट गयी...

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मानव मेहता /स्थान -टोहाना/ शिक्षा -स्नातक (कला) स्नातकोतर (अंग्रेजी) बी.एड./ व्यवसाय -शिक्षक/अंतर्जाल पर सारांश -एक अंत.. के माध्यम से सक्रिय।





11 टिप्‍पणियां:

  1. बंद होते खुलते हुए तेरे पलकों के दरम्यान,

    ए जाने वफ़ा, मेरी कायनात सिमट गयी...

    ...Bahut khubsurat bhav..badhai.

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  2. खूबसूरत लम्हों को सज़ा कर लिखी रचना ...

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  3. akanksha ji, shukriya meri rachna ko apne blog mein shamil karne ke liye...........!!

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  4. aap sabhi doston ka tahe-dil s shukriya jinhone is rachna ko sraha......... :))

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  5. खूबसूरत और सार्थक प्रस्तुति..बधाई.

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  6. खूबसूरत और सार्थक प्रस्तुति..बधाई.

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