सोमवार, 20 जून 2011

प्रेम गीत : रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ‘इंदू‘

जब से मैंने पढ़े प्यार के,
तेरे ढाई आखर।
तब से बसा नयन में मेरे,
चेहरा तेरा सुधाकर।

वह मुस्कान मधुर सी चितवन,
मीठे बोल धरे हैं अधरन।
बनी कमान भौंह कजरारी,
लिये लालिमा कंज कपोलन।।

जब से मिला हृदय को मेरे,
कमल खिला इक सागर।

नीर भरन जब जाए सजनिया,
लचके कमर बजै पैंजनिया।
भीगी लट रिमझिम बरसाती,
डोलत हिय ललचाय नथुनिया।

जब से मिली प्रणय को मेरे
नेह नीर की गागर।

चले मद भरी छैल छबीली,
धानी चूनर नीली-पीली।
सोंधी-सोंधी गंध समेटे,
चोली बांधे गाँठ गसीली।।

जब से हुआ बदन को मेरे,
मोहन मदन उजागर।

एक बूँद अमृत पाने को,
मैं तो कब से था विष पीता।
मन में मिलने की अभिलाषा,
‘इंदु‘ पोष कर पागल जीता।।

जब से लिखा अधर पर मेरे,
तेरा नाम पता घर।।


रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ‘इंदू‘
बड़ागाँव, झांसी (उ0प्र0)-284121

4 टिप्‍पणियां:

  1. एक बूँद अमृत पाने को,
    मैं तो कब से था विष पीता।
    मन में मिलने की अभिलाषा,
    ‘इंदु‘ पोष कर पागल जीता।।

    ...बहुत सुन्दर गीत...बधाई !!

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  2. एक बूँद अमृत पाने को,
    मैं तो कब से था विष पीता।
    मन में मिलने की अभिलाषा,
    ‘इंदु‘ पोष कर पागल जीता।।

    ...बहुत सुन्दर गीत...बधाई !!

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  3. सुन्दर गीत पढ़वाने का आभार.

    जवाब देंहटाएं

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