सोमवार, 4 जुलाई 2011

कल जीवन से फिर मिला : आशीष

कल वो सामने बैठी थी
कुछ संकोच ओढे हुए
सजीव प्रतिमा, झुकी आंखे
पलकें अंजन रेखा से मिलती थी

मेरे मन के निस्सीम गगन में
निर्जनता घर कर आयी थी
आकुल मन अब विचलित है
मुरली बजने लगी जैसे निर्जन में

खुले चक्षु से यौवनमद का रस बरसे
अपलक मै निहार रहा श्रीमुख को
सद्य स्नाता चंचला जैसे
निकल आयी हो चन्द्र किरण से

उसने जो दृष्टी उठाई तनिक सी
मिले नयन उर्ध्वाधर से
अधखुले अधरों में स्पंदन
छिड़ती मधुप तान खनक सी

ना जाने ले क्या अभिलाष
मेरे जीवन की नवल डाल
बौराए नव तरुण रसाल
नव जीवन की फिर दिखी आस

सुखद भविष्य के सपनो में
निशा की घन पलकों में झांक रहा
बिभावरी बीती, छलक रही उषा
जगी लालसा ह्रदय के हर कोने में !!
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आशीष राय/ अभियांत्रिकी का स्नातक, भरण के लिए सम्प्रति कानपुर में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में चाकरी, साहित्य पढने की रूचि है तो कभी-कभी भावनाये उबाल मारती हैं तो साहित्य सृजन भी हो जाता है /अंतर्जाल पर युग दृष्टि के माध्यम से सक्रियता.

12 टिप्‍पणियां:

  1. कोमल अहसासों से परिपूर्ण बहुत भावमयी प्रस्तुति..बहुत सुन्दर..

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  2. खूबसूरत कोमल भाव, सुन्दर शब्दों में पिरोये हुए.
    खूबसूरत कविता.

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  3. आभार मेरी रचना को स्थान देने के लिए .

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  4. कोमल भावो की सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. बहुत सुंदर लिखा है, बस नवजीवन और नव आशाओं से भरा हुआ सुखद जीवन और भविष्य का निर्माण करता है.

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  6. सुखद भविष्य के सपनो में
    निशा की घन पलकों में झांक रहा
    बिभावरी बीती, छलक रही उषा
    जगी लालसा ह्रदय के हर कोने में !!

    खूबसूरत भावों को लिए सुन्दर रचना ..

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  7. आशीष की रचनाएं मुझे सदैव ही आकर्षित करती रही हैं, इसने तो मन ही मोह लिया।

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  8. दिल की गहराई से लिखी गयी रचना बधाई की परिधि से बाहर ....

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  9. बहुत ही नाजुक अनुभूतियों को शब्द्ध कर दिया है आपने.बधाई

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