सोमवार, 18 जुलाई 2011

तुम्हारे अंक में


अंशल
तुम्हारे अंक में
अक्षुण्ण रहा
जीवन हमारा!
अनुराग के साथ
हमने थामा था
एक-दूजे का हाथ
अग्नि के संग-संग
फेरों में
वचनों ने हमें बांधा था
वह बंधन
सदा सुदृढ़ रहा
सरिता
सुजल प्रेम का
हर पल बहा
प्रिय!
सौखिक रहा
तेरा सहारा,
अंशल
तुम्हारे अंक में
अक्षुण्ण रहा
जीवन हमारा!
कभी ऊंच-नीच
कभी मनमुटाव
कभी वाक-युद्ध
कभी शांत भाव
कभी रूठना
कभी गुनगुनाना
कभी सोचना
कभी खिलखिलाना
हम-हम रहे
हम युग्म हुये
चलते रहे हैं साथ-साथ
प्रशस्त हुआ
मार्ग सारा,
अंशल,
तुम्हारे अंक में
अक्षुण्ण रहा
जीवन हमारा!

-राजेश कुमार
शिव निवास, पोस्टल पार्क चौराहा से पूरब, चिरैयाटांड,पटना-800001

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति..बधाई.

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  2. सुन्दर प्रस्तुति..बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  3. तुम्हारे अंक में
    अक्षुण्ण रहा
    जीवन हमारा!

    खूबसूरत प्रस्तुति.. बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  4. कभी ऊंच-नीच
    कभी मनमुटाव
    कभी वाक-युद्ध
    कभी शांत भाव
    कभी रूठना
    कभी गुनगुनाना
    कभी सोचना
    कभी खिलखिलाना
    हम-हम रहे
    हम युग्म हुये
    ...Bahut khub..badhai !!

    जवाब देंहटाएं

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