गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

यादें - नीलम पुरी

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती नीलम पुरी की कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

ए जाने जाना ,
ए नादान हसीना ,
तुम जब इठलाती हो और इतराती हो ,
मुझे बल खाती नदी सी लगती हो ,
बिलकुल ऐसे जैसे ...
लहरों का उठना फिर नदी में ही समां जाना .
कभी लगती हो शोख तितली सी ..
फूलों से रंग चुरा कर ज्यूँ तितली उड़ जाती है ,
तुम भी जब आती हो ...
मेरे सारे रंग समेट कर चली जाती हो .
तेरा ये मरमरी जिस्म ..
मेरे होश उड़ा देता है ..
तुम मासूम सी ,कुछ नादान सी ,
जब भी तुम्हे देखता हूँ तब होश नहीं रहता ,
तुम्हारा बदन है या संगेमरमर से तराशी हुई मूरत कोई ,
तुम्हे देखता हूँ तो होश गँवा बैठता हूँ ,
फिर भी तुम्हे दिल मे समां लेना चाहता हूँ .
खुद को खो देना चाहता हूँ तेरे ही अंदर कहीं ,
तेरे आने की इक आह्ट ,
भर देती है इन्द्रधनुषी रंगों से मेरी आँखें ,
क्यूँ तेरे आने से सारा आलम महक जाता है ,
क्यूँ तेरी खुशबु मदहोश कर जाती है मुझे ,
जब भी आती हो अपनी यादें दे जाती हो ,
तब य़े अरमान जाग उठते हैं ,
कसम खायंगे फलक तक साथ निभाएँगे ,
रहें ना रहें हम साथ साथ ,
फिर भी साथ निभाएंगे ,
और तुम अक्सर ,बिना कोई वादा किये लौट जाती हो,
तुम्हारे ख्यालों का अहसास ,
तुम्हारे बदन की तपिश ,
दे जाती है दर्द भरा सुकून ,
और छोड़ जाती हो भीनी भीनी अपनी खुशबु के साथ ,
मुझे यूँ ही तनहा ,
लेकिन अपनी हसीं यादों के साथ !

*********************************************************************************** नाम : नीलम पुरी / व्यवसाय: गृहिणी / शिक्षा-स्नातक/मैं "नीलम पुरी" बहुत ही साधारण से परिवार से जुडी अति-साधारण सी महिला हूँ. अपने पति और दो बच्चों की दुनिया में बेहद खुश हूँ. घर सँभालने के साथ अपने उद्वेगों को शांत करने के लिए कागज पर कलम घसीटती रहती हूँ और कभी सोचा न था कि मेरा लिखा कभी प्रकाशित भी होगा. खैर, कुछ दोस्तों की हौसलाअफजाई के चलते आज यहाँ हूँ. अंतर्जाल पर Ahsaas के माध्यम से सक्रियता.

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  2. बहुत सुन्दर कविता..बधाई !!

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  3. बहुत बढ़िया खूबसूरत प्रस्तुति ..नीलम जी !

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  4. adarniya Neelam ji
    Namaskar

    isi blog par kuch din pehle bhi humne neelam ji ke muktak padhe the

    shayd kuch line dimag me abhi bhi hai
    raat dhalti gai ,
    din bhi guzarta gya ,
    milner ki umeed me din fisal gya shyad yahi thi.....poori tarah se to yaad nahi hai par .....
    bahut hi badhiya muktak the...

    Regrds
    sanjay bhaskar

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  5. Neelam masi ji
    shayd ek line aur yaad hai .

    tanhai gunguna rahi hai ye bhi badhiya thi

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  6. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!
    शुभकामनायें.

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