'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती फाल्गुनी की एक कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
इन फूलों का नाम मैं नहीं जानती,
जानती हूं उस वसंत को
जो इन फूलों के साथ मेरे कमरे में आया है ....
चाहती हूं
तुमसे रूठ जाऊं
कई दिनों तक नजर ना आऊं
मगर कैसे
वासंती मौसम के पीले फूल
ठीक मेरे सामने हैं
बिलकुल तुम्हारी तरह
सोचती हूं
तुमसे मिले
जब गुजर जमाना जाएगा
तब भी
जीवन के हर एकांत में
पीले फूलों का यह खिलता वसंत
हर मौसम में मुझे
मुझमें ही मिल जाएगा
और तब तुम्हारा अनोखा प्यार
मुझे बहुत याद आएगा।
इन फूलों का नाम मैं नहीं जानती,
जानती हूं उस वसंत को
जो इन फूलों के साथ मेरे कमरे में आया है ....
चाहती हूं
तुमसे रूठ जाऊं
कई दिनों तक नजर ना आऊं
मगर कैसे
वासंती मौसम के पीले फूल
ठीक मेरे सामने हैं
बिलकुल तुम्हारी तरह
सोचती हूं
तुमसे मिले
जब गुजर जमाना जाएगा
तब भी
जीवन के हर एकांत में
पीले फूलों का यह खिलता वसंत
हर मौसम में मुझे
मुझमें ही मिल जाएगा
और तब तुम्हारा अनोखा प्यार
मुझे बहुत याद आएगा।
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'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटे रचनाओं को प्रस्तुत करते हैं. जो रचनाकार इसमें भागीदारी चाहते हैं, वे अपनी 2 मौलिक रचनाएँ, जीवन वृत्त, फोटोग्राफ kk_akanksha@yahoo.com पर भेज सकते हैं. रचनाएँ व जीवन वृत्त यूनिकोड फॉण्ट में ही हों.
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