तुम मिले तो जिंदगी में रंग भर गए।
तुम मिले तो जिंदगी के संग हो लिए।
प्यार का भी भला कोई दिन होता है। इसे समझने में तो जिंदगियां गुजर गईं और प्यार आज भी बे-हिसाब है। कबीर ने यूँ ही नहीं कहा कि 'ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय' . प्यार का न कोई धर्म होता है, न जाति, न उम्र, न देश और न काल। … बस होनी चाहिए तो अंतर्मन में एक मासूम और पवित्र भावना। प्यार लेने का नहीं देने का नाम है, तभी तो प्यार समर्पण मांगता है। कभी सोचा है कि पतंगा बार-बार दिये के पास क्यों जाता है, जबकि वह जानता है कि दीये की लौ में वह ख़त्म हो जायेगा, पर बार-बार वह जाता है, क्योंकि प्यार मारना नहीं, मर-मिटना सिखाता है। तभी तो कहते हैं प्यार का भी भला कोई नाम होता है। यह तो सबके पास है, बस जरुरत उसे पहचानने और अपनाने की है न कि भुनाने की।
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