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गुरुवार, 28 जुलाई 2011

प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटते मुक्तक

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटते नीलम पुरी जी के कुछ मुक्तक. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

१)आँखों के अश्क बह नहीं पाए,
खामोश रहे किसी से कुछ कह नहीं पाए,
किस से कहते दास्ताँ अपने दिल की,
जो था अपना उसे अपना कह नहीं पाए.
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२).जब भी रातों मे तेरी याद आती है ,
वीरान रातों में चाँदनी उतर आती है,
सोचती हूँ तुम मिलोगे खवाबों मे,
मगर ना तुम आते हो ना नींद आती है.
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३)मेरी तनहाइयाँ भी अब गुनगुनाने लगी हैं,
हाथों की चूडियाँ कुछ बताने लगी हैं,
ये खनक है शायद उनके आने की,
जिनकी याद में तू अब मुस्कुराने लागी है.
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४)खामोशियो मे भी गुनगुनाने को जी चाहता है,
तन्हायियो में भी महफिलें सजाने को जी चाहता है,
जाने क्या सर कर गया उसका पल दो पल का साथ,
बेगानों को भी अपना बनाने को जी चाहता है.
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५)पल पल पलकों पर सजाये मैंने,
पल पल अश्क आँखों में छुपाये मैंने,
पल पल इंतज़ार किया और,
पल पल ज़िन्दगी के यूँही बिताये मैंने.
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६)अपने अश्कों को छलकाना चाहती हूँ,
तुझे अपने सीने से लगाना चाहती हूँ,
जहाँ मिलती है ज़मी आसमा से ,
वहां अपना आशियाना बनाना चाहती हूँ.
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७) खामोशिओं के दरमियान सरगोशिया मत रखना,
मेरे तकिये तले कोई स्वप्न मत रखना ,
हर रात आधी अधूरी जीती हूँ मैं,
नीलम की दहलीज़ पर उम्मीद के दिए मत रखना.
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८)सूरज की बाहों मे चाँद तड़प गया,
तारों की छाँव मे ,मैं कल रात भटक गया,
पोंछता रहा रात भर नाम पलकों से उसे,
और वो मेरी आँखों मे टूटे ख्वाब सा चटख गया.
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९)रात ढलती गयी ,
दिन भी गुज़रता गया,
उस से मिलने की उम्मीद का,
ये पल भी फिसलता गया.
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१०) दिल की गहराईओं मैं बस जाते हैं वो,
धड़कन की तरह जिस्म मे समाते हैं वो,
जब जब दिल धडकता है तो अहसास होता है,
आज भी मेरे लिए मुस्कुराते तो हैं वो.

 *********************************************************************************** नाम : नीलम पुरी / व्यवसाय: गृहिणी / शिक्षा-स्नातक/मैं "नीलम पुरी" बहुत ही साधारण से परिवार से जुडी अति-साधारण सी महिला हूँ. अपने पति और दो बच्चों की दुनिया में बेहद खुश हूँ. घर सँभालने के साथ अपने उद्वेगों को शांत करने के लिए कागज पर कलम घसीटती रहती हूँ और कभी सोचा न था कि मेरा लिखा कभी प्रकाशित भी होगा. खैर, कुछ दोस्तों की हौसलाअफजाई के चलते आज यहाँ हूँ. अंतर्जाल पर Ahsaas के माध्यम से सक्रियता.

सोमवार, 18 जुलाई 2011

तुम्हारे अंक में


अंशल
तुम्हारे अंक में
अक्षुण्ण रहा
जीवन हमारा!
अनुराग के साथ
हमने थामा था
एक-दूजे का हाथ
अग्नि के संग-संग
फेरों में
वचनों ने हमें बांधा था
वह बंधन
सदा सुदृढ़ रहा
सरिता
सुजल प्रेम का
हर पल बहा
प्रिय!
सौखिक रहा
तेरा सहारा,
अंशल
तुम्हारे अंक में
अक्षुण्ण रहा
जीवन हमारा!
कभी ऊंच-नीच
कभी मनमुटाव
कभी वाक-युद्ध
कभी शांत भाव
कभी रूठना
कभी गुनगुनाना
कभी सोचना
कभी खिलखिलाना
हम-हम रहे
हम युग्म हुये
चलते रहे हैं साथ-साथ
प्रशस्त हुआ
मार्ग सारा,
अंशल,
तुम्हारे अंक में
अक्षुण्ण रहा
जीवन हमारा!

-राजेश कुमार
शिव निवास, पोस्टल पार्क चौराहा से पूरब, चिरैयाटांड,पटना-800001

सोमवार, 4 जुलाई 2011

कल जीवन से फिर मिला : आशीष

कल वो सामने बैठी थी
कुछ संकोच ओढे हुए
सजीव प्रतिमा, झुकी आंखे
पलकें अंजन रेखा से मिलती थी

मेरे मन के निस्सीम गगन में
निर्जनता घर कर आयी थी
आकुल मन अब विचलित है
मुरली बजने लगी जैसे निर्जन में

खुले चक्षु से यौवनमद का रस बरसे
अपलक मै निहार रहा श्रीमुख को
सद्य स्नाता चंचला जैसे
निकल आयी हो चन्द्र किरण से

उसने जो दृष्टी उठाई तनिक सी
मिले नयन उर्ध्वाधर से
अधखुले अधरों में स्पंदन
छिड़ती मधुप तान खनक सी

ना जाने ले क्या अभिलाष
मेरे जीवन की नवल डाल
बौराए नव तरुण रसाल
नव जीवन की फिर दिखी आस

सुखद भविष्य के सपनो में
निशा की घन पलकों में झांक रहा
बिभावरी बीती, छलक रही उषा
जगी लालसा ह्रदय के हर कोने में !!
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आशीष राय/ अभियांत्रिकी का स्नातक, भरण के लिए सम्प्रति कानपुर में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में चाकरी, साहित्य पढने की रूचि है तो कभी-कभी भावनाये उबाल मारती हैं तो साहित्य सृजन भी हो जाता है /अंतर्जाल पर युग दृष्टि के माध्यम से सक्रियता.