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मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

एक सपना

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर  आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती  अरविंद भटनागर ' शेखर'  की एक कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा... 


सपने, तान्या
एक दम छोटे से बच्चे 
जैसे होते हैं/
अपने मे खोए से / 
जाने क्या सोचते रहते हैं/
फिर हौले से मुस्कुरा देते हैं/
फिर कुछ गुनगुनाने लगते हैं/
फिर गाने लगते हैं/
फिर नाचने लगते हैं/
फिर चकित हो जाते हैं/
फिर खामोश हो जाते हैं/
फिर उदास हो जाते हैं/
फिर सुबकने लगते हैं/
फिर दर्द की भाप मे बदल जाते हैं/
ओर दिल से उठ कर 
आँखों की कोरों पर आ के 
बैठ जाते हैं/
ओर खोई खोई आँखों से 
अपनी तान्या को खोजने लगते हैं/
फिर उन्ही गालों पर
बहने लगते हैं
जिन्हे तुमने  चूमा था/
भीगे भीगे इस मौसम मे/
ऐसा ही एक सपना 
मेरे दिल से उठ कर /
मेरी आँखों की कोरों पर 
आ बैठा है/
ओर  खोज रहा है  तुम्हे |

-अरविंद भटनागर ' शेखर'