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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

मैं तुझमें तू कहाँ खो गयी

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता  जय कृष्ण राय 'तुषार' का एक प्रेम-गीत. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

यह भी क्षण
कितना सुन्दर है
मैं तुझमें तू कहीं खो गयी |
इन्द्रधनुष
की आभा से ही
प्यासी धरती हरी हो गयी |

जीवन बहती नदी
नाव तुम ,हम
लहरें बन टकराते हैं ,
कुछ की किस्मत
रेत भुरभुरी कुछ
मोती भी पा जाते हैं ,
मेरी किस्मत
बंजारन थी
जहाँ पेड़ था वहीँ सो गयी |

तेरी इन
अपलक आँखों में
आगत दिन के कुछ सपने हैं ,
पांवों के छाले
मुरझाये अब
फूलों के दिन अपने हैं ,
मेरा मन
कोरा कागज था
उन पर तुम कुछ गीत बो गयी |
 

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

सखी तू मत हो उदास

 
हल्दू हल्दू बसंत का मौसम
शीतल हवा कभी गर्म है मौसम
रक्तिम रक्तिम फूले प्लास
सखी तू क्यों है उदास?

सज़ल नेत्र क्यों खड़ी हुई है ?
दुखियारी सी बनी हुई है
क्यों छोड़ रही गहरी श्वास
सखी तू क्यों भई उदास?

केश तुम्हारे खुले हुए हैं
बादल जैसे मचल रहे हैं
बसंत मे सावन कि आस
सखी तू क्यों है उदास?

वृक्ष पल्लवित हो रहे हैं
पीत पत्र संग छोड़ रहे हैं
नव जीवन सी सजी आस
सखी तू कैसे बनी उदास?

रंग बिरंगे फूल खिले हैं
भंवरे उन पर मचल रहे हैं
तितली भी मकरंद कि आस
सखी तू किसलिए भई उदास?

कलियाँ खिलती,भंवरे गाते
पेड़ों पर पक्षी शोर मचाते
चहुँ और सजा है मधु मास
सखी तू कैसे भई उदास?

पिया मिलन जल्दी होगा
भँवरा फूल संग होगा
रखो जीवन मे विश्वास
सखी तू मत हो उदास|

डॉ अ कीर्तिवर्धन