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शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

प्रेम जीवन की परिभाषा है...

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर  आज  'वेलेंटाइन डे' पर  प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती लीला तिवानी  की एक कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा... 



प्रेम मन की आशा है, 
करता दूर निराशा है, 
चन्द शब्दों में कहें तो, 
प्रेम जीवन की परिभाषा है. 

प्रेम से ही सुमन महकते हैं, 

प्रेम से ही पक्षी चहकते हैं, 
चन्द शब्दों में कहें तो, 
प्रेम से ही सूरज-चांद-तारे चमकते हैं, 

प्रेम शीतल-मंद-सुवासित बयार है, 
ऋतुओं में बसंत बहार है, 
चन्द शब्दों में कहें तो, 
प्रेम आनंद का आधार है. 

प्रेम हमारी आन है. 
प्रेम देश की शान है. 
चन्द शब्दों में कहें तो, 
प्रेम प्रभु का वरदान है. 

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

फिर वसंत की आत्मा आई - सुमित्रानंदन पंत


फिर वसंत की आत्मा आई,
मिटे प्रतीक्षा के दुर्वह क्षण,
अभिवादन करता भू का मन !
दीप्त दिशाओं के वातायन,
प्रीति सांस-सा मलय समीरण,
चंचल नील, नवल भू यौवन,
फिर वसंत की आत्मा आई,
आम्र मौर में गूंथ स्वर्ण कण,
किंशुक को कर ज्वाल वसन तन !
देख चुका मन कितने पतझर,
ग्रीष्म शरद, हिम पावस सुंदर,
ऋतुओं की ऋतु यह कुसुमाकर,
फिर वसंत की आत्मा आई,
विरह मिलन के खुले प्रीति व्रण,
स्वप्नों से शोभा प्ररोह मन !
सब युग सब ऋतु थीं आयोजन,
तुम आओगी वे थीं साधन,
तुम्हें भूल कटते ही कब क्षण? 
फिर वसंत की आत्मा आई,
देव, हुआ फिर नवल युगागम,
स्वर्ग धरा का सफल समागम !

(प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की वसंत पर एक गीत)