फ़ॉलोअर

सोमवार, 14 मार्च 2011

तेरा इठलाना : मुकेश कुमार सिन्हा

ऐ नादान हसीना
क्यूं तेरा इठलाना
तेरा इतराना
ऐसे लगता है जैसे
बलखाती नदी की
हिलोंरे मरती लहरों
का ऊपर उठाना
और फिर नीचे गिरना


क्यूं तुम
फूलों से रंग चुरा कर
भागती हो शरमा कर
बलखा कर


क्यूँ तेरा हुश्न
होश उड़ाए
फिर नजरो से
दिल में छा जाये


क्यूं तेरे आने
की एक आहट
भर दे ख्यालो में
सतरंगी रंगत


क्यूं इसके
महके महके आलम से
इतने दीवाने
हो जाते हैं हम


क्यूं जगे अरमां
जो कहे फलक तक साथ चल
ऐ मेरे दिलनशी
हमसफ़र


पर क्यूं
दिलरुबा जैसे ही नजरों
से ओझल हुई
लगता है
चांदनी
बिखर गयी.....


फिर भी क्यूं
उसके जाने पर भी
खयालो में उसका अहसास
और उसकी तपिश
देती है एक शुकून....
एक अलग सी खुशबू
*************************************************************************
मुकेश कुमार सिन्हा झारखंड के धार्मिक राजधानी यानि देवघर (बैद्यनाथधाम) का रहने वाला हूँ! वैसे तो देवघर का नाम बहुतो ने सुना भी न होगा,पर यह शहर मेरे दिल मैं एक अजब से कसक पैदा करता है, ग्यारह ज्योतिर्लिंग और १०८ शक्ति पीठ में से एक है, पर मेरे लिए मेरा शहर मुझे अपने जवानी की याद दिलाता है, मुझे अपने कॉलेज की याद दिलाता है और कभी कभी मंदिर परिसर तथा शिव गंगा का तट याद दिलाता है,तो कभी दोस्तों के संग की गयी मस्तियाँ याद दिलाता है..काश वो शुकून इस मेट्रो यानि आदमियों के जंगल यानि दिल्ली मैं भी मिल पाता. पर सब कुछ सोचने से नहीं मिलता और जो मिला है उससे मैं खुश हूँ.क्योंकि इस बड़े से शहर मैं मेरी दुनिया अब सिमट कर मेरी पत्नी और अपने दोनों शैतानों (यशु-रिशु)के इर्द-गिर्द रह गयी है और अपने इस दुनिया में ही अब मस्त हूँ, खुश हूँ.अंतर्जाल पर जिंदगी की राहें के माध्यम से सक्रियता.

18 टिप्‍पणियां:

Neelam ने कहा…

ऐ नादान हसीना
क्यूं तेरा इठलाना
तेरा इतराना
ऐसे लगता है जैसे
बलखाती नदी की
हिलोंरे मरती लहरों
का ऊपर उठाना
और फिर नीचे गिरना


क्यूं तुम
फूलों से रंग चुरा कर
भागती हो शरमा कर
बलखा कर
Mukesh ji aapka likhna..aur uska ithlana..wah..bahut khoob.

पी.एस .भाकुनी ने कहा…

पर क्यूं
दिलरुबा जैसे ही नजरों
से ओझल हुई
लगता है
चांदनी
बिखर गयी.....
wahhhhhhhhhh

vandana gupta ने कहा…

बहुत रोमांटिक कविता लिखी है।

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

dhanyawad ankanksha jee...yahan pe meree kavite ko jagah dene ke liye..:)

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बहुत रूमानी कविता है मुकेश भाई.. आपका एक नया पक्ष दिख रहा है इस कविता में...

बेनामी ने कहा…

फिर भी क्यूं
उसके जाने पर भी
खयालो में उसका अहसास
और उसकी तपिश
देती है एक शुकून....
एक अलग सी खुशबू

वाह बहुत खूब...दिल से लिखी गई कविता
और इसके भाव आपके दिल की गहराई को
बताते है

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.uchcharan.com/

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

फिर भी क्यूं
उसके जाने पर भी
खयालो में उसका अहसास
और उसकी तपिश
देती है एक शुकून....
एक अलग सी खुशबू

वाह बहुत खूब....मुकेशजी की रचनाएँ उनके ब्लॉग पर भी पढ़ी हैं.... उनकी अभिव्यक्ति बहुत प्रभावी है....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मुकेश कुमार सिन्हा की सुन्दर अभिव्यक्ति पढ़वाने के लिए शुक्रिया!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

dhanywad saaare sudhi pathako ko...aur dhanywad sangeeta di, charcha manch tak isko pahuchane ke liye..:)

Unknown ने कहा…

आप बहुत शानदार लिखते हैं. कम और सुन्दर शब्द, पूरी बात. बधाई स्वीकारें.

mydunali.blogspot.com

KK Yadav ने कहा…

बेहतरीन शब्दों में भावों को ढाला आपने..बधाई.

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बहुत ही गहरे एहसास के साथ सुंदर कविता......

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

dhanyawad sabo ko..:)

बेनामी ने कहा…

बहुत अच्छी कविता है इस कविता की हर एक लाइन में सचाई है !!!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

thanx
!