'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता जय कृष्ण राय 'तुषार' का एक प्रेम-गीत. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
यह भी क्षण
यह भी क्षण
कितना सुन्दर है
मैं तुझमें तू कहीं खो गयी |
इन्द्रधनुष
की आभा से ही
प्यासी धरती हरी हो गयी |
जीवन बहती नदी
नाव तुम ,हम
लहरें बन टकराते हैं ,
कुछ की किस्मत
रेत भुरभुरी कुछ
मोती भी पा जाते हैं ,
मेरी किस्मत
बंजारन थी
जहाँ पेड़ था वहीँ सो गयी |
तेरी इन
अपलक आँखों में
आगत दिन के कुछ सपने हैं ,
पांवों के छाले
मुरझाये अब
फूलों के दिन अपने हैं ,
मेरा मन
कोरा कागज था
उन पर तुम कुछ गीत बो गयी |
2 टिप्पणियां:
नहीं समझ आता कि कौन किसमें खो गया है
मेरा मन
कोरा कागज था
उन पर तुम कुछ गीत बो गयी............
सुन्दर रचना !!
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