पर दिल क्यूँ चाहता है की तुम दो कदम साथ चलो?
मैं जानता हूँ सुबह का सूरज मुझे नींद से जगा देगा,
पर दिल क्यूँ चाहता है तुम इन आँखों में रात करो?
मैं जानता हूँ की प्यासा ही रह जाऊंगा मैं शायद,
पर दिल क्यूँ चाहता है तुम मेरी बरसात बनो?
मैं जानता हूँ अंत नहीं कोई इस सिलसिले का,
पर दिल क्यूँ चाहता है तुम इसकी शुरुआत करो !!
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शिक्षा- B.Tech. (IT-BHU), PGDBM (XLRI)
वर्तमान शहर- जमशेदपुर
अंतर्जाल पर Reflections के माध्यम से सक्रियता.
3 टिप्पणियां:
बेहतरीन, आपकी शुरुआत, दूर तलक जायेगी।
बहुत सुन्दर रचना।
सुन्दर सी कविता...मेरी भी बधाई.
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