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सोमवार, 25 अप्रैल 2011

मैं तुम्हारी संगिनी हूँ : अनामिका घटक

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती अनामिका घटक की कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

मुझे उस पर नहीं जाना
क्योंकि इस पार
मैं तुम्हारी संगिनी हूँ
उस पार निस्संग जीवन है.

स्वागत के लिए
इस पार मैं सहधर्मिणी
कहलाती हूँ
मातृत्व सुख से परिपूर्ण हूँ
मातापिता हैं देवता स्वरुप पूजने के लिए.

उस पार मै स्वाधीन हूँ
पर स्वाधीनता का
रसास्वादन एकाकी है
गरल सामान.

इस पार रिश्तों की पराधीनता मुझे
सहर्ष स्वीकार है
इस पार प्रिये तुम हो
मैं तुम्हारी संगिनी हूँ !!
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नाम:अनामिका घटक

जन्मतिथि : २७-१२-१९७०

जन्मस्थान :वाराणसी

कर्मस्थान: नॉएडा

व्यवसाय : अर्द्धसरकारी संस्थान में कार्यरत.

शौक: साहित्य चर्चा , लेखन और शास्त्रीय संगीत में गहन रूचि.

ई-मेल : ghatak.27@gmail.com

7 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

बहुत ही सुन्दर ख्याल है…………रिश्तों की अहमियत दर्शाता।

Rahul Singh ने कहा…

हमें तो यही याद आया- उस पार न जाने क्‍या होगा.

निर्मला कपिला ने कहा…

उस पार मै स्वाधीन हूँ
पर स्वाधीनता का
रसास्वादन एकाकी है
गरल सामान.
बहुत सुन्दर भाव हैं बधाई इस रचना के लिये।

Vijuy Ronjan ने कहा…

इस पार रिश्तों की पराधीनता मुझे
सहर्ष स्वीकार है
इस पार प्रिये तुम हो
मैं तुम्हारी संगिनी हूँ !!
बहुत बढ़िया अनामिका जी...रिश्तों की पराधीनता में प्रिय का साथ स्वाधीन करता है...

Sunil Kumar ने कहा…

इस पार रिश्तों की पराधीनता मुझे
सहर्ष स्वीकार है
इस पार प्रिये तुम हो
मैं तुम्हारी संगिनी हूँ !!
भावों को अच्छी अभिव्यक्ति , बधाई

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

आपने तो बड़ा सुन्दर गीत लिखा...बधाई.

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'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

bahut sundar rachna....badhai..