जब से मैंने पढ़े प्यार के,
तेरे ढाई आखर।
तब से बसा नयन में मेरे,
चेहरा तेरा सुधाकर।
वह मुस्कान मधुर सी चितवन,
मीठे बोल धरे हैं अधरन।
बनी कमान भौंह कजरारी,
लिये लालिमा कंज कपोलन।।
जब से मिला हृदय को मेरे,
कमल खिला इक सागर।
नीर भरन जब जाए सजनिया,
लचके कमर बजै पैंजनिया।
भीगी लट रिमझिम बरसाती,
डोलत हिय ललचाय नथुनिया।
जब से मिली प्रणय को मेरे
नेह नीर की गागर।
चले मद भरी छैल छबीली,
धानी चूनर नीली-पीली।
सोंधी-सोंधी गंध समेटे,
चोली बांधे गाँठ गसीली।।
जब से हुआ बदन को मेरे,
मोहन मदन उजागर।
एक बूँद अमृत पाने को,
मैं तो कब से था विष पीता।
मन में मिलने की अभिलाषा,
‘इंदु‘ पोष कर पागल जीता।।
जब से लिखा अधर पर मेरे,
तेरा नाम पता घर।।
रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ‘इंदू‘
बड़ागाँव, झांसी (उ0प्र0)-284121
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग एक ऐसा मंच है, जहाँ हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं. रचनाएँ किसी भी विधा और शैली में हो सकती हैं. आप भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 2 मौलिक रचनाएँ, जीवन वृत्त, फोटोग्राफ kk_akanksha@yahoo.com पर भेज सकते हैं. रचनाएँ व जीवन वृत्त यूनिकोड फॉण्ट में ही हों.
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सोमवार, 20 जून 2011
सोमवार, 13 जून 2011
प्यार का आलम : मानव मेहता
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती मानव मेहता की एक ग़ज़ल. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
चाँद के चेहरे से बदली जो हट गयी,
रात सारी फिर आँखों में कट गयी..
छूना चाहा जब तेरी उड़ती हुई खुशबू को,
सांसें मेरी तेरी साँसों से लिपट गयी..
तुमने छुआ तो रक्स कर उठा बदन मेरा,
मायूसी सारी उम्र की इक पल में छट गयी..
बंद होते खुलते हुए तेरे पलकों के दरम्यान,
ए जाने वफ़ा, मेरी कायनात सिमट गयी...
**********************************************************************************
मानव मेहता /स्थान -टोहाना/ शिक्षा -स्नातक (कला) स्नातकोतर (अंग्रेजी) बी.एड./ व्यवसाय -शिक्षक/अंतर्जाल पर सारांश -एक अंत.. के माध्यम से सक्रिय।
चाँद के चेहरे से बदली जो हट गयी,
रात सारी फिर आँखों में कट गयी..
छूना चाहा जब तेरी उड़ती हुई खुशबू को,
सांसें मेरी तेरी साँसों से लिपट गयी..
तुमने छुआ तो रक्स कर उठा बदन मेरा,
मायूसी सारी उम्र की इक पल में छट गयी..
बंद होते खुलते हुए तेरे पलकों के दरम्यान,
ए जाने वफ़ा, मेरी कायनात सिमट गयी...
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सोमवार, 6 जून 2011
मेरी कौन हो तुम : सुमन 'मीत'
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती सुमन 'मीत' की एक कविता। आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
पूछती हो मुझसे
मेरी कौन हो तुम !
मैं पथिक तुम राह
मैं तरु तुम छाँव
मैं रेत तुम किनारा
मैं बाती तुम उजियारा
पूछती हो मुझसे मेरी....!
मैं गीत तुम सरगम
मैं प्रीत तुम हमदम
मैं पंछी तुम गगन
मैं सुमन तुम चमन
पूछती हो मुझसे मेरी....!
मैं बादल तुम बारिश
मैं वक्त तुम तारिख
मैं साहिल तुम मौज
मैं यात्रा तुम खोज
पूछती हो मुझसे मेरी....!
मैं मन तुम विचार
मैं शब्द तुम आकार
मैं कृत्य तुम मान
मैं शरीर तुम प्राण
पूछती हो मुझसे
मेरी कौन हो तुम !!
***********************************************************************************

सुमन 'मीत'/मण्डी, हिमाचल प्रदेश/ मेरे बारे में-पूछी है मुझसे मेरी पहचान; भावों से घिरी हूँ इक इंसान; चलोगे कुछ कदम तुम मेरे साथ; वादा है मेरा न छोडूगी हाथ; जुड़ते कुछ शब्द बनते कविता व गीत; इस शब्दपथ पर मैं हूँ तुम्हारी “मीत”! अंतर्जाल पर बावरा मन के माध्यम से सक्रियता.
पूछती हो मुझसे
मेरी कौन हो तुम !
मैं पथिक तुम राह
मैं तरु तुम छाँव
मैं रेत तुम किनारा
मैं बाती तुम उजियारा
पूछती हो मुझसे मेरी....!
मैं गीत तुम सरगम
मैं प्रीत तुम हमदम
मैं पंछी तुम गगन
मैं सुमन तुम चमन
पूछती हो मुझसे मेरी....!
मैं बादल तुम बारिश
मैं वक्त तुम तारिख
मैं साहिल तुम मौज
मैं यात्रा तुम खोज
पूछती हो मुझसे मेरी....!
मैं मन तुम विचार
मैं शब्द तुम आकार
मैं कृत्य तुम मान
मैं शरीर तुम प्राण
पूछती हो मुझसे
मेरी कौन हो तुम !!
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सुमन 'मीत'/मण्डी, हिमाचल प्रदेश/ मेरे बारे में-पूछी है मुझसे मेरी पहचान; भावों से घिरी हूँ इक इंसान; चलोगे कुछ कदम तुम मेरे साथ; वादा है मेरा न छोडूगी हाथ; जुड़ते कुछ शब्द बनते कविता व गीत; इस शब्दपथ पर मैं हूँ तुम्हारी “मीत”! अंतर्जाल पर बावरा मन के माध्यम से सक्रियता.
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