'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर 'धरोहर' के अंतर्गत आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता सोम ठाकुर जी का एक गीत. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
लौट आओ,
माँग के सिंदूर की सौगंध
तुमको नयन का सावन
निमंत्रण दे रहा है,
लौट आओ,
आज पहिले प्यार की सौगन्ध
तुमको प्रीत का बचपन
निमंत्रण दे रहा है,
लौट आओ,
मानिनी, है मान की सौगन्ध
तुमको बात का निर्धन निमंत्रण दे रहा है,
लौट आओ,
हारती मनुहार की सौगंध तुमको
भीगता आँगन निमंत्रण दे रहा है !
- सोम ठाकुर
लौट आओ,
माँग के सिंदूर की सौगंध
तुमको नयन का सावन
निमंत्रण दे रहा है,
लौट आओ,
आज पहिले प्यार की सौगन्ध
तुमको प्रीत का बचपन
निमंत्रण दे रहा है,
लौट आओ,
मानिनी, है मान की सौगन्ध
तुमको बात का निर्धन निमंत्रण दे रहा है,
लौट आओ,
हारती मनुहार की सौगंध तुमको
भीगता आँगन निमंत्रण दे रहा है !
- सोम ठाकुर
3 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर शब्दो से भरी रचना
मन के भावों को उकेरती सी.सुन्दर भावपूर्ण रचना.
बहुत सुन्दर....
इस प्यारी मनुहार को कौन टाल सकता है...उसे लौट आना ही होगा...
अनु
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