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सोमवार, 16 मई 2011
प्राण मेरे तुम न आये : बच्चन लाल बच्चन
मैं बुलाती रह गई, पर प्राण मेरे तुम न आये।
नयन-काजल धुल गए हैं
अश्रु की बरसात से
नींद आती है नहीं-
मुझको कई एक रात से
तिलमिला उर रह गया, पर प्राण मेरे तुम न आये।
तोड़ कर यूँ प्रीत-बंधन
चल पड़े क्यों दूर मुझसे
तुम कदाचित हो उठे थे-
पूर्णतः मजबूर मुझसे
मैं ठगी सी रह गयी, पर प्राण मेरे तुम न आये।
नेत्र पट पर छवि तुम्हारी
नाचती आठों पहर है
याद तेरी पीर बनकर
ढ़ाहती दिल पर कहर है
मैं बिलखती रह गयी, पर प्राण मेरे तुम न आये।
मैं बुलाती रह गयी, पर प्राण मेरे तुम न आये।
बच्चन लाल बच्चन,
12/1, मयूरगंज रोड, कोलकाता-700023
रेखांकन : किशोर श्रीवास्तव
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5 टिप्पणियां:
जो देखा उसे
दिल में समाई
बजी शहनाई
वह आई
क़ब्ज़ा लिया
दिल और चारपाई
फिर ऋतु जो भी आई
बस प्यार ही लाई
प्यार की सौग़ात ही लाई
पाँच बच्चों की सूरत दिखाई
आज भी जब
लेती है वह अंगड़ाई
मैं काँप जाता हूँ
सोचकर
प्यार का अंजाम
मिलन का परिणाम
जो ऋतु हरेक है लाई
http://www.nirantarajmer.com/2011/05/blog-post_7585.html?showComment=1305685784804#c3776651505549519218
प्रेम के भावों पर बहुत सुन्दर कविता..बच्चन जी को बधाई.
ऋतुओं को दोष ? सुन्दर रचना , बच्चन जी को बधाई .....
..बहुत सुन्दर गीत. बच्चन जी को बधाई.
..बहुत सुन्दर गीत. बच्चन जी को बधाई.
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