हल्दू हल्दू बसंत का मौसम
शीतल हवा कभी गर्म है मौसम
रक्तिम रक्तिम फूले प्लास
सखी तू क्यों है उदास?
सज़ल नेत्र क्यों खड़ी हुई है ?
दुखियारी सी बनी हुई है
क्यों छोड़ रही गहरी श्वास
सखी तू क्यों भई उदास?
केश तुम्हारे खुले हुए हैं
बादल जैसे मचल रहे हैं
बसंत मे सावन कि आस
सखी तू क्यों है उदास?
वृक्ष पल्लवित हो रहे हैं
पीत पत्र संग छोड़ रहे हैं
नव जीवन सी सजी आस
सखी तू कैसे बनी उदास?
रंग बिरंगे फूल खिले हैं
भंवरे उन पर मचल रहे हैं
तितली भी मकरंद कि आस
सखी तू किसलिए भई उदास?
कलियाँ खिलती,भंवरे गाते
पेड़ों पर पक्षी शोर मचाते
चहुँ और सजा है मधु मास
सखी तू कैसे भई उदास?
पिया मिलन जल्दी होगा
भँवरा फूल संग होगा
रखो जीवन मे विश्वास
सखी तू मत हो उदास|
डॉ अ कीर्तिवर्धन
शीतल हवा कभी गर्म है मौसम
रक्तिम रक्तिम फूले प्लास
सखी तू क्यों है उदास?
सज़ल नेत्र क्यों खड़ी हुई है ?
दुखियारी सी बनी हुई है
क्यों छोड़ रही गहरी श्वास
सखी तू क्यों भई उदास?
केश तुम्हारे खुले हुए हैं
बादल जैसे मचल रहे हैं
बसंत मे सावन कि आस
सखी तू क्यों है उदास?
वृक्ष पल्लवित हो रहे हैं
पीत पत्र संग छोड़ रहे हैं
नव जीवन सी सजी आस
सखी तू कैसे बनी उदास?
रंग बिरंगे फूल खिले हैं
भंवरे उन पर मचल रहे हैं
तितली भी मकरंद कि आस
सखी तू किसलिए भई उदास?
कलियाँ खिलती,भंवरे गाते
पेड़ों पर पक्षी शोर मचाते
चहुँ और सजा है मधु मास
सखी तू कैसे भई उदास?
पिया मिलन जल्दी होगा
भँवरा फूल संग होगा
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Mobile: 09911323732
Email:a.kirtivardhan@gmail.com, a.kirtivardhan@rediffmail.com
ब्लॉग http://kirtivardhan.blogspot.com/, http://www.box.net/kirtivardhan
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3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-02-2013) के चर्चा मंच-११५२ (बदहाल लोकतन्त्रः जिम्मेदार कौन) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!
bahut sunder ...
सखी तू क्यों भई उदास...सुंदर प्रस्तुति
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