'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता राकेश श्रीवास्तव का एक प्रेम-गीत. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
काश हम अजनबी
तेरे लिए होते
इजहारे मोहब्बत ,
सरेआम किये होते
काश तुम
......
जब से ये जाना
मोहब्बत का नाम
मोहब्बत को दे
दिया तेरा ही नाम
मोहब्बत का पैगाम ,
कब का पेश कर दिए होते
काश तुम
......
मेरे होठ सिले के
सिले रह गए
इजहारे मोहब्बत , न
हम कर सके
मोहब्बत है तुझसे
, हम तुमको बता देते
काश तुम
......
तेरा नाम लेके मै
जीती रही
तेरा नाम लेके मै
मरती रही
तुम करते हो
प्यार मुझसे
काश पहले ही बता
देते
काश हमदोनो एक
दुसरे को बता देते
काश हम अजनबी
तेरे लिए होते
इजहारे मोहब्बत , सरेआम किये होते .
भारतीय रेल में कार्यरत. फ़िलहाल कपूरथला में. अध्ययन-लेखन में अभिरूचि. अपने हिंदी ब्लॉग 'राकेश की रचनाएँ' के माध्यम से सक्रियता.
2 टिप्पणियां:
Behatrin..badhai.
प्रेम मौन निःशब्द निस्पृह है,किंतु स्वयं में अभिव्यक्त पूर्ण है।
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