'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती अरविंद भटनागर ' शेखर' की एक कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
सपने, तान्या
एक दम छोटे से बच्चे
जैसे होते हैं/
अपने मे खोए से /
जाने क्या सोचते रहते हैं/
फिर हौले से मुस्कुरा देते हैं/
फिर कुछ गुनगुनाने लगते हैं/
फिर गाने लगते हैं/
फिर नाचने लगते हैं/
फिर चकित हो जाते हैं/
फिर खामोश हो जाते हैं/
फिर उदास हो जाते हैं/
फिर सुबकने लगते हैं/
फिर दर्द की भाप मे बदल जाते हैं/
ओर दिल से उठ कर
आँखों की कोरों पर आ के
बैठ जाते हैं/
ओर खोई खोई आँखों से
अपनी तान्या को खोजने लगते हैं/
फिर उन्ही गालों पर
बहने लगते हैं
जिन्हे तुमने चूमा था/
भीगे भीगे इस मौसम मे/
ऐसा ही एक सपना
मेरे दिल से उठ कर /
मेरी आँखों की कोरों पर
आ बैठा है/
ओर खोज रहा है तुम्हे |
-अरविंद भटनागर ' शेखर'