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रविवार, 20 अप्रैल 2014

ज़बां लफ्ज़े मुहब्बत है

ज़बां लफ्ज़े मुहब्बत है
दिलों में पर अदावत है ।

न कोई रूठना मनाना
यही तुम से शिकायत है ।

कि बस रोज़ी कमाते सब
नहीं कोई हिकायत है ।

मुहब्बत ही तो जन्नत है
अदावत दिन क़यामत है ।

पढ़ो तुम बन्द आँखों से
लिखी दिल पे इबारत है ।

ग़रीबों से जो हमदर्दी
 यही सच्ची इबादत़ है ।

कभी यों ग़ज़ल कह लेता
बड़ी उस  की इनायत है ।

-- डा सुधेश

परिचय :  दिल्ली  में सन १९७५ से । अत: दिल्ली वासी । जन्मतिथि  - ६जून सन  १९३३। जन्म स्थान  जगाधरी  ज़िला अम्बाला (हरियाणा ).  बचपन जगाधरी ,देवबन्द में बीता ।शिक्षा देवबन्द, मुज़फ़्फ़रनगर , देहरादून में पाई  । एम ए हिन्दी में ( नागपुर वि वि )  पीएच डी  आगरा विवि से । उ प़ के तीन कॉलेजों में अध्यापन के बाद दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू वि वि में २३ वर्षों तक अध्यापन । प़ोफेसर पद से सेवानिवृत्त । तीन बार विदेंश यात्राएँ । अब स्वतन्त्र लेखन ।

काव्य कृतियाँ 
                १ फिर सुबह होगी ही  ( राज पब्लिशिंग हाउस ,पुराना सीलमपुर  ,दिल्ली ) १९८३            
                २ घटनाहीनता के विरुद्ध ( साहित्य संगम , विद्याविहार , पीतमपुरा ,दिल्ली ) १९८८ ,            
                  ३ तेज़ धूप ( साहित्य संगम , दिल्ली ) सन १९९३ 
              ४ जिये गये शब्द ( अनुभव प़काशन , साहिबाबाद़ ,ग़ाज़ियाबाद ) सन १९९९ 
              ५ गीतायन ( गीत और ग़ज़लें ) कवि सभा,विश्वास नगर , शाहदरा ,दिल्ली - २००१
              ६ बरगद ( खण्डकाव्य ) प़खर प़काशन ,नवीनशाहदरा ,दिल्ली  - २००१ 
              ७ निर्वासन ( खण्ड काव्य ) साहित्य संगम , पीतमपुरा , दिल्ली - सन २००५ 
              ८जलती शाम (काव्यसंग़ह) अनुभव प़काशन , साहिबाबाद़, ग़ाज़ियाबाद-२००७ 
              ९ सप्तपदी , खण्ड ७(दोहा संग़ह ) अयन प़काशन , महरौली ,दिल्ली सन २००७ 
              १०हादसों के समुन्दर ( ग़ज़लसंग़ह )  पराग बुक्स , ग़ाज़ियाबाद - सन २०१० 
              ११ तपती चाँदनी ( काव्यसंग़ह ) अनुभव प़काशन , साहिबाबाद़ - २०१३ 

    आलोचनात्मक पुस्तकें 
          
                १ आधुनिक हिन्दी और उर्दू कविता की प़वृत्तियां ,राज पब्लिशिंग हाउस ,पुराना 
                  सीलम पुर  दिल्ली    सन १९७४ 
                २ साहित्य के विविध आयाम -शारदा प़काशन ,दिल्ली  १९८३ 
                  ३ कविता का सृजन और मूल्याँकन - साहित्य संगम, पीतमपुरा ,दिल्ली  १९९३
                  ४ साहित्य चिन्तन - साहित्य संगम , दिल्ली    १९९५ 
                  ५  सहज कविता ,स्वरूप और सम्भावनाएँ - साहित्य संग़म ,दिल्ली १९९६ 
                ६  भाषा ,साहित्य और संस्कृति - स्रार्थक प़काशन ,दिल्ली  २००३
                ७ राष़्ट्रीय एकता के सोपान - इण्डियन पब्लिशर्स,क़मला नगर ,दिल्ली २००४ 
                ८  सहज कविता की भूमिका - अनुभव प़काशन ,ग़ाज़ियाबाद २००८
                  ९ चिन्तन अनुचिन्तन - यश पब्लिकेंशन्स, दिल्ली  २०१२ 
              १०  हिन्दी की दशा और दिशा -जनवाणी प़काशन , दिल्ली  २०१३ 

    विविध प़काशन 
    तीन यात्रा वृत्तान्त ,दो संस्मरण संग़ह,एक उपन्यास,एक व्यंग्यसंग़ह ,
      एक आत्मकथा  प़काशित । कुल २९ पुस्तकें प़काशित ।

प़ाप्त पुरस्कार  , सम्मान 
    मध्यप़देश साहित्य अकादमी का भारतीय कविता पुरस्कार  २००६
    भारत सरकार के सूचना प़सारण मंत्रालय का भारतेन्दु हरिश्चन्द़ पुरस्कार २०००
    लखनऊ के राष्ट़़धर्म प़काशन  का राष्ट़़धर्म गौरव सम्मान  २००४
    आगरा की नागरी प़चारिणी सभा द्वारा सार्वजनिक अभिनन्दन  २००४ 









      



बुधवार, 16 अप्रैल 2014

हर जनम में साथ रहना, हर समय तुम मुस्कराना

तुम अकेले रह गए तो भोर का तारा बनूं मै।
मै अकेला रह गया तो रात बनकर पास आना।

तुम कलम की नोक से उतरे हो अक्षर की तरह।
मै समय के मोड़ पर बिखरा हूँ प्रस्तर की तरह।
तुम अकेले बैठकर बिखरी हुई प्रस्तर शिला पर,
सांध्य का संगीत कोई मौन स्वर में गुनगुनाना।

एक परिचय था पिघलकर घुल गया है सांस में।
रात भर जलता रहा दीपक सृजन की आस में।
दृश्य अंकित है तुम्हारा मिट न पाया आज तक
बिखरे हुए सपनों को चुनकर प्यार का एक घर बसाना।

बह रहा दरिया न रोको भंवर का परिहास देखो।
कह रहा उठ गिर कहानी लहर का अनुप्रास देखो।
एक कश्ती की तरह मै तुम किनारे के पथिक हो
शाम होते ही नदी से अपने घर को लौट जाना।

पर्वतों के पार जाकर मै तुम्हे आवाज दूंगा।
प्रीति के तारों से निर्मित मै तुम्हें एक साज दूंगा।
मेरी नज़रों में उतरकर आखिरी अनुबंध कर लो
हर जनम में साथ रहना हर समय तुम मुस्कराना।

-रविनंदन सिंह 
संपादक -'हिंदुस्तानी' शोध पत्रिका  

हिंदुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद