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गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

ओ प्रेम !

ओ प्रेम !
जन्मा ही कहाँ है
अभी तू मेरे कोख से कि कैसे कहूँ
तुझे जन्मदिन मुबारक

दुबका पड़ा है
अब भी मेरी कोख में
सहमा-सहमा सा कि कैसे चूमूँ
माथा तेरा
चूस रहा है
अब भी आँवल से
कतरा कतरा
लहू मेरा
कि कैसे पोषूँ
धवल से
नहीं जन्मना है
तुझे इस
कलयुगी दुनिया में
ले चले मुझे कोई ब्रह्माण्ड के उस पार !

-संगीता सेठी 
प्रशासनिक अधिकारी भारतीय जीवन बीमा निगम 
अम्बिकापुर
sangeeta.sethi@licindia.com

बुधवार, 23 दिसंबर 2015

ये दुनिया हमारी सुहानी न होती


ये दुनिया हमारी सुहानी न होती,
कहानी ये अपनी कहानी न होती ।

ज़मीं चाँद -तारे सुहाने न होते,
जो प्रिय तुम न होते,अगर तुम न होते।
न ये प्यार होता,ये इकरार होता,
न साजन की गलियाँ,न सुखसार होता।

ये रस्में न क़समें,कहानी न होतीं,
ज़माने की सारी रवानी न होती ।
हमारी सफलता की सारी कहानी,
तेरे प्रेम की नीति की सब निशानी ।

ये सुंदर कथाएं फ़साने न होते,
सजनि! तुम न होते,जो सखि!तुम न होते ।


तुम्हारी प्रशस्ति जो जग ने बखानी,
कि तुम प्यार-ममता की मूरत,निशानी ।
ये अहसान तेरा सारे जहाँ पर,
तेरे त्याग -द्रढता की सारी कहानी ।

ज़रा सोचलो कैसे परवान चढ़ते,
हमीं जब न होते,जो यदि हम न होते।
हमीं हैं तो तुम हो सारा जहाँ है,
जो तुम हो तो हम है, सारा जहाँ है।

अगर हम न लिखते,अगर हम न कहते,
भला गीत कैसे तुम्हारे ये बनते।
किसे रोकते तुम, किसे टोकते तुम,
ये इसरार इनकार ,तुम कैसे करते ।

कहानी हमारी -तुम्हारी न होती,
न ये गीत होते, न संगीत होता।

सुमुखि !तुम अगर जो हमारे न होते,
सजनि!जो अगर हम तुम्हारे न होते॥

डा श्याम गुप्त
  के-३४८, आशियाना, लखनऊ २२६०१२
drgupta04@gmail.com

गुरुवार, 19 नवंबर 2015

मेरे गीतों में आकर के तुम क्या बसे

मेरे गीतों में आकर के तुम क्या बसे,
गीत का स्वर मधुर माधुरी हो गया।
अक्षर अक्षर सरस आम्रमंजरि हुआ,
शब्द मधु की भरी गागरी हो गया।

तुम जो ख्यालों में आकर समाने लगे,
गीत मेरे कमल दल से खिलने लगे।
मन के भावों में तुमने जो नर्तन किया,
गीत ब्रज की भगति- बावरी हो गया। ...मेरे गीतों में ..... ॥

प्रेम की भक्ति सरिता में होके मगन,
मेरे मन की गली तुम समाने लगे।
पन्ना पन्ना सजा प्रेम रसधार में,
गीत पावन हो मीरा का पद हो गया।

भाव चितवन के मन की पहेली बने,
गीत कबीरा का निर्गुण सबद हो गया।
तुमने छंदों में सज कर सराहा इन्हें ,
मधुपुरी की चतुर नागरी हो गया। .....मेरे गीतों में..... ॥

मस्त में तो यूहीं गीत गाता रहा,
तुम सजाते रहे,मुस्कुराते रहे।
गीत इठलाके तुम को बुलाने लगे,
मन लजीली कुसुम वल्लरी हो गया।

तुम जो हंस हंस के मुझको बुलाते रहे,
दूर से छलना बन कर लुभाते रहे।
भाव भंवरा बने, गुनगुनाने लगे ,
गीत कालिका -नवल-पांखुरी हो गया। .....मेरे गीतों में... ॥
@ डा. श्याम गुप्त 

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नाम— डा. श्याम गुप्त      
पिता—स्व.श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता, माता—स्व.श्रीमती रामभेजीदेवी, पत्नी—श्रीमती सुषमा गुप्ता एम.ए.(हि.).
जन्म— १० नवम्बर,१९४४ ई....ग्राम-मिढाकुर, जि. आगरा, उ.प्र.  भारत ..
शिक्षा—एम.बी.,बी.एस.,एम.एस.(शल्य), सरोजिनी नायडू चिकित्सा महाविद्यालय,आगरा.
व्यवसाय-चिकित्सक (शल्य)-उ.रे.चिकित्सालय, लखनऊ से व.चि.अधीक्षक पद से सेवा निवृत ।
साहित्यिक-गतिविधियां--विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से संबद्ध, काव्य की सभी विधाओं—कविता-गीत,   अगीत, गद्य-पद्य, निबंध, कथा-कहानी-उपन्यास, आलेख, समीक्षा आदि में लेखन। ब्लोग्स व इन्टर्नेट पत्रिकाओं में लेखन.
प्रकाशित कृतियाँ -- १. काव्य दूत २.काव्य निर्झरिणी ३.काव्य मुक्तामृत (काव्य सन्ग्रह)  ४. सृष्टि–अगीत-विधा महाकाव्य ५.प्रेम-काव्य-गीति-विधा महाकाव्य ६.शूर्पणखा खंड-काव्य,  ७. इन्द्रधनुष उपन्यास, ८. अगीत साहित्य दर्पण- अगीत कविता विधा का छंद विधान, ९.ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा में काव्य संग्रह ) एवं १०. कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए,रुबाई व शेर का संग्रह )
शीघ्र-प्रकाश्य- तुम तुम और तुम (गीत-सन्ग्रह), गज़ल सन्ग्रह, श्याम स्मृति, अगीत-त्रयी, ईशोपनिषद का काव्य भावानुवाद.....  
मेरे ब्लोग्स( इन्टर्नेट-चिट्ठे)—श्याम स्मृति (http://shyamthot.blogspot.com), साहित्य श्याम, अगीतायन, छिद्रान्वेषी, विजानाति-विजानाति-विज्ञान एवं हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान...
सम्मान आदि—
१.न.रा.का.स.,राजभाषा विभाग,(उ प्र) द्वारा राजभाषा सम्मान (काव्य संग्रह काव्यदूत व काव्य-निर्झरिणी हेतु).
२.अभियान जबलपुर संस्था (म.प्र.) द्वारा हिन्दी भूषण सम्मान( महाकाव्य ‘सृष्टि’ हेतु )
३.विन्ध्यवासिनी हिन्दी विकास संस्थान, नई दिल्ली द्वारा बावा दीप सिन्घ स्मृति सम्मान,
४.अ.भा.अगीतपरिषद द्वारा-श्री कमलापति मिश्र सम्मान व अ.भा.साहित्यकार दिवस पर प.सोहनलाल द्विवेदी सम्मान|
५. अ.भा.अगीत परिषद द्वारा अगीत-विधा महाकाव्य सम्मान( अगीत-विधा महाकाव्य सृष्टि हेतु)
६.जाग्रति प्रकाशन, मुम्बई द्वारा-साहित्य-भूषण एवं पूर्व पश्चिम गौरव सम्मान,
७.इन्द्रधनुष सन्स्था बिज़नौर द्वारा..काव्य-मर्मज्ञ सम्मान.
८.छ्त्तीसगढ शिक्षक साहित्यकार मंच, दुर्ग द्वारा-हिरदे कविरत्न सम्मान,
९.युवा कवियों की सन्स्था; ’सृजन’’ लखनऊ द्वारा महाकवि सम्मान एवं सृजन-साधना वरिष्ठ कवि सम्मान.
१०.शिक्षा साहित्य व कला विकास समिति,श्रावस्ती द्वारा श्री ब्रज बहादुर पांडे स्मृति सम्मान
११.अ.भा.साहित्य संगम,उदयपुर द्वारा राष्ट्रीय-प्रतिभा-सम्मान व शूर्पणखा काव्य-उपन्यास हेतु 'काव्य-केसरी' उपाधि |
१२. जगत सुन्दरम कल्याण ट्रस्ट द्वारा महाकवि जगत नारायण पांडे स्मृति सम्मान.
१३. बिसारिया शिक्षा एवं सेवा समिति, लखनऊ द्वारा ‘अमृत-पुत्र पदक
१४. कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति, बेंगालूरू द्वारा सारस्वत सम्मान(इन्द्रधनुष –उपन्यास हेतु)
१५.विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान,इलाहाबाद द्वारा ‘विहिसा-अलंकरण’-२०१२....आदि..
१६.युवा रचनाकार मंच द्वारा डा अनंत माधव चिपलूणकर स्मृति सम्मान -२०१५
१७.साहित्यामंडल श्रीनाथ द्वारा –द्वारा हिन्दी साहित्य विभूषण सम्मान
पता—  डा श्याम गुप्त,  सुश्यानिदी

शनिवार, 13 जून 2015

जब से मैं रंगा हूँ तेरे प्रेम रंग में रंग रसिया

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर  आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती सुभाष प्रसाद गुप्ता की  कविताएं. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

जब से मैं रंगा हूँ तेरे प्रेम रंग में रंग रसिया,
मेरा तन मन सब  इंद्रधनुषी होने  लगा हैI


जब से मिला है धरकन तेरे सुर में प्रेम पिया,
मध्यम के  बिना सुर सप्तक सजने लगा हैI


जब से चला है तेरे प्रेम का जादू मन माहिया,
मद्यपान  बिना मेरा सुध बुध खोने लगा हैI


जब से मिला है तेरा पथ साथ में सोने साथिया,
अब चाँद और धरा की दूरी सिमटने लगा हैI


जब से मन मगन है तेरे धुन में संग सांवरिया,
साज़ सरगम के बिना कदम थिरकने लगा हैI

जब से मिला है तेरे रूह में साँस वन बसिया,
चंपा चमेली खिले बिना सुबास होने लगा हैI




विरहों के अग्नि में लपटी है वर्षों से मेरी काया
दादूर पुकारती सांवरिया सावन की भाषा बोल दो


माघ की शीत वसन में सिमटी है तेरी माया
कोयल कूँ कूँ पुकारती सांवरिया रंग बसंती घोल दो


अंधियारी दिवा में बिलखती है तेरी किशलया
पपीहरा पीयूँ  पुकारती सांवरिया अधर पट खोल दो


मधुर मिलन की आस में तरसती है तेरी छाया
भँवरे गुं गुं पुकारती सांवरिया प्रेम गीत मोल दो


तीव्र सप्तक  के लय में थिरकती है तेरी सौम्या
घुँघरू झनन  पुकारती सांवरिया पंचम रस घोल दो

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नाम                               : सुभाष प्रसाद गुप्ता
जन्म तिथि                      : ०७/ १/ १९७५
जन्म स्थान                     : बिहार में मिथिला और भोजपुरी की अभिसरण स्थली में बागमती नदी के किनारे
शिक्षा                 :        किरोड़ीमल महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय) से स्नातकोत्तर (राजनीतिज्ञ विज्ञान)
                          :        केंद्रीय हिंदी संस्थान से परा स्नातकोत्तर डिप्लोमा (जनसंचार और पत्रकारिता)
प्रशिक्षण               : भारतीय विदेश व्यापार संस्थान, नई दिल्ली से विदेश व्यापार में उन्मुखीकरण कार्यक्रम
                              : भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलूरू से सार्वजनिक नीति प्रबंधन में उन्मुखीकरण कार्यक्रम
                              :  तुर्की भाषा में उच्चतर  डिप्लोमा (अंकारा विश्वविद्यालय, तुर्की )

 पेशा                  :      पेशेवर कूटनीतिज्ञ (भारतीय विदेश सेवा)
पदस्थापन             : भारतीय कूटनिक मिशन  जकार्ता , अंकारा और इस्तांबुल में विभिन्न कार्यों का संपादन
                            : वर्तमान में प्रथम सचिव (राजर्थिक), भारत का राजदूतावास, खार्तूम, सूडान
भाषिक ज्ञान           : संस्कृत, हिंदी और इसकी विभिन्न बोलियाँ, अंग्रेजी, ऊर्दू, तुर्की और अज़री

 परिवार                : पत्नी (डा० रूचि गुप्ता - दन्त चिकित्सक) पुत्री-शताक्षी सुरुचि और पुत्र: ऋत्विक सुभांश
अभिरुचि              : ग़ज़ल, गीत और रंगमंच लेखन, अभिनय, फोटोग्राफी, संगीत सुनना इत्यादिi
हिंदी में लेखन          : पिछले पच्चीस वर्षों से, गीत (शताधिक), नाटक (प्रायोजित मिडिया और घूंघट में                                           
                                 पंचायत) रचनाएँ अप्रकाशित
ब्लॉग                 : क्षितिज की तरफ़ अनवरत सफ़र (http://subhashpgupta.blogspot.com/)
लक्ष्य                 : वैश़्विक शांति और भारतीय हितों की प्रोन्नति