डायरी के पुराने पन्नों को पलटिये तो बहुत कुछ सामने आकर घूमने लगता है. ऐसे ही इलाहाबाद विश्विद्यालय में अध्ययन के दौरान प्यार को लेकर एक कविता लिखी थी. आज आप सभी के साथ शेयर कर रहा हूँ-
दो अजनबी निगाहों का मिलना
मन ही मन में गुलों का खिलना
हाँ, यही प्यार है............ !!
आँखों ने आपस में ही कुछ इजहार किया
हरेक मोड़ पर एक दूसरे का इंतजार किया
हाँ, यही प्यार है............ !!
आँखों की बातें दिलों में उतरती गई
रातों की करवटें और लम्बी होती गई
हाँ, यही प्यार है............ !!
सूनी आँखों में किसी का चेहरा चमकने लगा
हर पल उनसे मिलने को दिल मचलने लगा
हाँ, यही प्यार है............ !!
चाँद व तारे रात के साथी बन गये
न जाने कब वो मेरी जिन्दगी के बाती बन गये
हाँ, यही प्यार है............ !!
- कृष्ण कुमार यादव