कौन थी वो प्रेममयी , जो हवा के झोके संग आई
जिसकी खुशबू फ़ैल रही है , जैसे नव अमराई
क्षीण कटि, बसंत वसना, चंचला सी अंगड़ाई
खुली हुई वो स्निग्ध बाहें , दे रही थी आमंत्रण
नवयौवन उच्छश्रीन्खल. लहराता आंचल प्रतिक्षण
लावण्य पाश से बंधा मै, क्यों छोड़ रहा था हठ प्रण
मृगनयनी,तन्वांगी , तरुणी, उन्नत पीन उरोज
अविचल चित्त , तिर्यक दृग ,अधर पंखुड़ी सरोज
क्यों विकल हो रहा था ह्रदय , ना सुनने को कोई अवरोध
कामप्रिया को करती लज्जित , देख अधीर होता ऋतुराज
देखकर दृग कोर से मै , क्यों बजने लगे थे दिल के साज
उसके , ललाट से कुंचित केश हटाये,झुके नयन भर लाज
नहीं मनु मै, ना वो श्रद्धा, पुलकित नयन गए थे मिल
आलिंगन बद्ध होते ही उनकी , मुखार्व्रिंद गए थे खिल
हम खो गए थे अपने अतीत में , आयी समीप पुनः मंजिल .
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आशीष / अभियांत्रिकी का स्नातक, भरण के लिए सम्प्रति कानपुर में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में चाकरी ,साहित्य पढने की रूचि है तो कभी-कभी भावनाये उबाल मारती हैं तो साहित्य सृजन भी हो जाता है /अंतर्जाल पर युग दृष्टि के माध्यम से सक्रियता.
जिसकी खुशबू फ़ैल रही है , जैसे नव अमराई
क्षीण कटि, बसंत वसना, चंचला सी अंगड़ाई
खुली हुई वो स्निग्ध बाहें , दे रही थी आमंत्रण
नवयौवन उच्छश्रीन्खल. लहराता आंचल प्रतिक्षण
लावण्य पाश से बंधा मै, क्यों छोड़ रहा था हठ प्रण
मृगनयनी,तन्वांगी , तरुणी, उन्नत पीन उरोज
अविचल चित्त , तिर्यक दृग ,अधर पंखुड़ी सरोज
क्यों विकल हो रहा था ह्रदय , ना सुनने को कोई अवरोध
कामप्रिया को करती लज्जित , देख अधीर होता ऋतुराज
देखकर दृग कोर से मै , क्यों बजने लगे थे दिल के साज
उसके , ललाट से कुंचित केश हटाये,झुके नयन भर लाज
नहीं मनु मै, ना वो श्रद्धा, पुलकित नयन गए थे मिल
आलिंगन बद्ध होते ही उनकी , मुखार्व्रिंद गए थे खिल
हम खो गए थे अपने अतीत में , आयी समीप पुनः मंजिल .
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आशीष / अभियांत्रिकी का स्नातक, भरण के लिए सम्प्रति कानपुर में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में चाकरी ,साहित्य पढने की रूचि है तो कभी-कभी भावनाये उबाल मारती हैं तो साहित्य सृजन भी हो जाता है /अंतर्जाल पर युग दृष्टि के माध्यम से सक्रियता.
10 टिप्पणियां:
bahut khub
बहुत ही भावभीनी अभिव्यक्ति है।
बहुत सुन्दर श्रिंगार रस और प्रेम रस का अद्भुत संगम। बधाई इस रचना के लिये।
bahut achi rachna hai
आकांक्षा जी आपका आभार , मेरी इस रचना को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिए . मै कृत कृत हुआ .
बहुत सुन्दर कविता...बधाई !!
बेहद खूबसूरत शब्दों से सजी ..प्रेम रस की बेहतरीन अभिव्यक्ति.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 01- 02- 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बहुत ही भावभीनी अभिव्यक्ति है।
शब्दों का बेजोड संगम..बहुत भावपूर्ण कोमल अभिव्यक्ति..
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