कैसे मीत बनूँ मैं तेरा।
काँटों भरा सफर है मेरा।।
कौन सारथी बने हमारा।
विरह सिन्धु में कौन सहारा ?
कैसे लड़ूँ वाहव्य वैरी से,
मैं अपनों से हारा।
क्या आयेगा पुनः सवेरा।।
कितना गम है किसे सुनाऊँ?
अपना सीना चीर दिखाऊँ।
कोई मुझे नहीं पढ़ पाया,
विवश भाव से होंठ चबाऊँ।
ऊपर से घनघोर अंधेरा।।
कैसे मीत बनूँ मैं तेरा।
काँटों भरा सफर है मेरा।।
कृष्णमणि चतुर्वेदी ‘मैत्रेय‘
ग्राम-सहिनवा पो0 गौसैसिंहपुर, सुल्तानपुर (उ0प्र0)
6 टिप्पणियां:
कोई मुझे नहीं पढ़ पाया,
विवश भाव से होंठ चबाऊँ।
ऊपर से घनघोर अंधेरा।।
कैसे मीत बनूँ मैं तेरा।
काँटों भरा सफर है मेरा।।
खूबसूरत अभिव्यक्ति...बधाई.
bahut khub!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
बहुत सुन्दर गीत...पसंद आया. ...बधाई.
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'पाखी की दुनिया' में 'चल मेरे हाथी'
बेहतरीन गीत...बधाई.
बहुत ही सुन्दर कविता।
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