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सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

कैसे मीत बनूँ मैं तेरा : कृष्णमणि चतुर्वेदी ‘मैत्रेय‘


कैसे मीत बनूँ मैं तेरा।
काँटों भरा सफर है मेरा।।

कौन सारथी बने हमारा।
विरह सिन्धु में कौन सहारा ?
कैसे लड़ूँ वाहव्य वैरी से,
मैं अपनों से हारा।
क्या आयेगा पुनः सवेरा।।

कितना गम है किसे सुनाऊँ?
अपना सीना चीर दिखाऊँ।
कोई मुझे नहीं पढ़ पाया,
विवश भाव से होंठ चबाऊँ।
ऊपर से घनघोर अंधेरा।।

कैसे मीत बनूँ मैं तेरा।
काँटों भरा सफर है मेरा।।


कृष्णमणि चतुर्वेदी ‘मैत्रेय‘
ग्राम-सहिनवा पो0 गौसैसिंहपुर, सुल्तानपुर (उ0प्र0)

6 टिप्‍पणियां:

KK Yadav ने कहा…

कोई मुझे नहीं पढ़ पाया,
विवश भाव से होंठ चबाऊँ।
ऊपर से घनघोर अंधेरा।।

कैसे मीत बनूँ मैं तेरा।
काँटों भरा सफर है मेरा।।

खूबसूरत अभिव्यक्ति...बधाई.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

bahut khub!

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत...पसंद आया. ...बधाई.


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'पाखी की दुनिया' में 'चल मेरे हाथी'

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

बेहतरीन गीत...बधाई.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता।