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मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

प्रेम-गीत : तुम्हारे नहीं होने पर यहाँ कुछ भी नहीं होता

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता जय कृष्ण राय 'तुषार' का प्रेम-गीत. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

तुम्हारे
नहीं होने पर
यहाँ कुछ भी नहीं होता |
सुबह से
शाम मैं
खामोशियों में जागता -सोता |
तुम्हारे
साथ पतझर में
भी जंगल सब्ज लगता है ,
सुलगते
धुँए सा सिगरेट के,
अब चाँद दिखता है ,
भरे दरिया में
भी लगता है
जैसे जल नहीं होता |

नहीं हैं रंग
वो स्वप्निल
क्षितिज के इन्द्रधनुओं में ,
न ताजे
फूल में खुशबू
चमक गायब जुगुनुओं में ,
प्रपातों में
कोई खोया हुआ
बच्चा दिखा रोता |

मनाना
रूठना फिर
गुनगुनाना और बतियाना ,
किताबों में
मोहब्बत का
नहीं होता ये अफ़साना ,
हमारे सिर
का भारी बोझ
अब कोई नहीं ढोता |

किचन भी
हो गया सूना
नहीं अब बोलते बर्तन ,
महावर पर
कोई कविता नहीं
लिखता है अन्तर्मन |
टंगे हैं
खूंटियों पर अब
कोई कपड़े नहीं धोता |

खिड़कियों से
डूबता सूरज
नहीं हम देख पाते ,
अब परिन्दों
के सुगम -
संगीत मन को नहीं भाते ,
लौट आओ
झील में डूबें -
लगाएं साथ गोता |
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जन्म 01-01-1969 को ग्राम -पसिका पोस्ट -बरदह जनपद -आजमगढ़ में माँ चन्द्रावती राय और पिता स्व० त्रिवेणी राय के पुत्र के रूप में हुआ |मेरा दस्तावेजों में नाम जयकृष्ण नारायण शर्मा है |मेरी प्रारम्भिक शिक्षा आजमगढ़ में हुई |उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ |सम्प्रति उच्च न्यायालय इलाहाबाद में अधिवक्ता के रूप में कार्यरत |मेरी कविताएँ बी० बी०सी० हिंदी पत्रिका लन्दन ,नया ज्ञानोदय ,आजकल ,अहा!जिंदगी ,दैनिक भाष्कर ,जनसत्ता ,आधारशिला ,नये -पुराने हिन्दुस्तानी एकेडमी ,नव निकष , अक्षर पर्व ,अप्रतिम अपरिहार्य ,युगीन काव्या नवगीत के नए प्रतिमान आदि अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं |सभी प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में कविताएँ प्रकाशित ,आकाशवाणी और दूरदर्शन तथा प्राइवेट चैनलों से कविताओं का प्रसारण |प्रथम हरिवंश राय बच्चन पुरस्कार 2006 से सम्मानित |इंटरनेट पर छान्दसिक अनुगायन और सुनहरी कलम से साहित्यिक ब्लॉग के माध्यम से सक्रिय |सम्पर्क जयकृष्ण राय तुषार 63जी/7बेलीकालोनी ,स्टैनली रोड ,इलाहाबाद[ यू० पी० ]पिन -211002 Mob.no.09005912929

5 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत..मन को छू गया..तुषार जी को बधाइयाँ.

KK Yadav ने कहा…

खिड़कियों से
डूबता सूरज
नहीं हम देख पाते ,
अब परिन्दों
के सुगम -
संगीत मन को नहीं भाते ,
लौट आओ
झील में डूबें -
लगाएं साथ गोता |

...Bahut sundar Abhivyakti..Badhai.

देवेंद्र ने कहा…

हृदयस्पर्षी गीत।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहद खूबसूरत गीत..

Shahroz ने कहा…

Beautiful Creation..congts