'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती अवनीश कुमार की एक कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
तुम-
गुलाबी हो
जैसे नवजात की
नज़र
तुम-
हरी हो
जैसे नवेली वसंत की
ऊष्मा
तुम-
नीली हो
जैसे बड़े परदे की
बड़ी सी फिल्म
तुम-
उजली हो
जैसे हर रोज़ धुलती
कमीज़
तुम-
नारंगी हो
जैसे छनती हुई
रौशनी
तुम-
लाल हो
जैसे मध्य भारत की
मिट्टी
तुम-
भूरी हो
जैसे शाम के वक़्त
चौखट
रंग-बिरंगी हो
जैसे स्कूल से लौटी
बच्ची
जैसे आंग्ल-भाषाई
चपलता
जैसे हमारी
बातचीत
-अवनीश
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अवनीश कुमार. लेखन-अध्ययन में रूचि . फ़िलहाल अपने ब्लॉग असहमति की कविता और सशब्द-विद्रोह के माध्यम से सक्रियता.
4 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर कविता..पढ़वाने का आभार..
रंग-बिरंगी हो
जैसे स्कूल से लौटी बच्ची
जैसे आंग्ल-भाषाई चपलता
जैसे हमारी बातचीत
..बहुत सुन्दर रचना...बधाई.
वाह ..
बहुत सुंदर
प्रेम की भाव-धरा पर अनुपम रचना..बधाई.
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