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शनिवार, 11 सितंबर 2010

कहां थमता है प्यार

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती अरुणा राय की कविता। आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

प्रेमी
गौरैये का वो जोड़ा है
जो समाज के रौशनदान में
उस समय घोसला बनाना चाहते हैं
जब हवा सबसे तेज बहती हो
और समाज को प्रेम पर
उतना एतराज नहीं होता
जितना कि घर में ही
एक और घर तलाशने की उनकी जिद पर
शुरू में
खिड़की और दरवाजों से उनका आना-जाना
उन्हें भी भाता है
भला लगता है चांय-चू करते
घर भर में घमाचौकड़ी करना
पर जब उनके पत्थर हो चुके फर्श पर
पुआल की नर्म सूखी डांट और पत्तियां गिरती हैं
एतराज
उनके कानों में फुसफुसाता है
फिर वे इंतजार करते हैं
तेज हवा
बारिश
और लू का
और देखते हैं
कि कब तक ये चूजे
लड़ते हैं मौसम से
बावजूद इसके
जब बन ही जाता है घोंसला
तब वे जुटाते हैं
सारा साजो-सामान
चौंकी लगाते हैं पहले
फिर उस पर स्टूल
पहुंचने को रोशनदान तक
और साफ करते हैं
कचरा प्रेम का
और फैसला लेते हैं
कि घरों में रौशनदान
नहीं होने चाहिए
नहीं दिखने चाहिए
ताखे
छज्जे
खिड़कियां में जाली होनी चाहिए

पर ऐसी मार तमाम बंदिशों के बाद भी
कहां थमता है प्यार

जब वे सबसे ज्यादा
निश्चिंत
और बेपरवाह होते हैं
उसी समय
जाने कहां से
आ टपकता है एक चूजा

भविष्यपात की सारी तरकीबें
रखी रह जाती हैं
और चूजा
बाहर आ जाता है..!!
************************************************************************************
नाम - अरूणा राय

उपनाम - रोज

जन्म : १८ नवंबर १९८४ को इलाहाबाद में।

शिक्षा : बी.एससी. इलाहाबाद से

कार्यक्षेत्र : पुलिस सेवा में सब इंस्पेक्टर।

रुचियाँ : लेखन, चित्रकला व नृत्य

ई मेल- arunarai2010@gmail.com

21 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

पर ऐसी मार तमाम बंदिशों के बाद भी
कहां थमता है प्यार

और फिर वह प्यार ही क्या जो थम जाये ...
बहुत खूबसूरत भाव की रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
--
दूज का चन्दा गगन में मुस्कराया।
साल भर में ईद का त्यौहार आया।।

छा गई गुलशन में जन्नत की बहारें,
ईद ने सबको गले से है मिलाया।
साल भर में ईद का त्यौहार आया।।

Parul kanani ने कहा…

sundar abhivyakti..aruna ji ka photo ismein char chand laga raha hai :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना ...प्यार को अभिव्यक्त करती हुई ...

अरुणा जी की फोटो से नहीं लगता कि पुलिस की नौकरी में हैं ...और न ही इस कविता से लगता है ..इतना संवेदनशील मन ...और ?

vandana gupta ने कहा…

जो थम जाये वो प्यार कहाँ?
प्यार तो नूर की वो बूँद है जो बह रही है और बहती रहेगी और तन मन को आल्हादित करती रहेगी……………।बेहद उम्दा प्रस्तुति।

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

bahut sundar kavitayen badhai arunaji

abhi ने कहा…

कितना सही लिखा है, बहुत खूबसूरत कविता

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

बहन जी ईद और गणेश चतुर्थी पर हार्दिक बधाई इस मोके पर जिस अंदाज़ में आपने अपनी पोस्ट की प्रस्तुती की हे उसकी तारीफ के लियें मुझे अल्फाज़ नहीं मिल रहे हें जिस अंदाज़ में आपने गंगा जमना संस्क्रती का संदेश दिया हे इसके लियें बधाई . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान अजय भाई भुत खूब हैजान आपने इस संगम पर जो अनूठा कार्यक्रम बनाया हे वोह भुत खूब और काबिले तारीफ़ हे बेहतरीन प्रदर्शन के लियें थे दिल से बधाई ईद और गणेश चतुर्थी पर हार्दिक बधाई , अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

मनोज कुमार ने कहा…

भावपूर्ण कविता।

आपको और आपके परिवार को तीज, गणेश चतुर्थी और ईद की हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत से फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा, “मनोज” पर, मनोज कुमार की प्रस्तुति पढिए!

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत सुन्दर............

Padm Singh ने कहा…

पर ऐसी मार तमाम बंदिशों के बाद भी
कहां थमता है प्यार..... सुन्दर...


वैसे १९८४ में मै के पी कोलेज इलाहाबाद में पढता था... मेरा इलाहाबाद याद आ गया

अजय कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर रचना है , शबदों का चयन और उनका उप्योग खूबसूरती से किया गया है

अजय कुमार ने कहा…

सुंदर सार्थक रचना ।

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.


हर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, . देखिए

KK Yadav ने कहा…

पर ऐसी मार तमाम बंदिशों के बाद भी
कहां थमता है प्यार
...जो थम जाये, वह प्यार क्या. खूबसूरत अभिव्यक्ति...अरुणा राय को बधाई.

Akanksha Yadav ने कहा…

भविष्यपात की सारी तरकीबें
रखी रह जाती हैं
और चूजा
बाहर आ जाता है..!!

....बहुत खूब...उम्दा !

Akanksha Yadav ने कहा…

@ संगीता जी,
पुलिसिया चेहरे के पीछे भी संवेदनाएं छुपी होती हैं, बशर्ते कोई उन्हें समय के साथ विस्मृत न कर दे.

निर्मला कपिला ने कहा…

काश यही संवेदनायें उम्र भर बनी रहें बहुत गहरी सुन्दर अभिव्यक्ति। अरुणा जी को बधाई।

Amit Kumar Yadav ने कहा…

इलाहाबाद में तो हम भी रहते हैं...बड़ा अपनापन लगा यह रचना पढ़कर. अरुणा राय जी को बधाई.

Unknown ने कहा…

अतिसुन्दर कविता है भगवान आपको नित नईकल्पना शक्ति प्रदान करे और आप इन रचनाओ से भी बेहतर कुछ रच सके

Mithilesh Rai ने कहा…

aapki kavita bahut hi achchhi lagi, meri anubhutio ko jhakjorta hai