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सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

हाथ देकर न उँगली छुड़ाया करो

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर 'धरोहर' के तहत आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता स्वर्गीय गोपालसिंह नेपाली जी का एक गीत. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

दिल चुरा कर न हमको बुलाया करो
गुनगुना कर न गम को सुलाया करो,
दो दिलों के मिलन का यहाँ है चलन
खुद न आया करो तो बुलाया करो,
रंग भी गुल शमा के बदलने लगे
तुम हमीं को न कस्में खिलाया करो,
सर झुकाया गगन ने धरा मिल गई
तुम न पलकें सुबह तक झुकाया करो,
सिंधु के पार को चाँद जाँचा करे
तुम न पायल अकेली बजाया करो,
मन्दिरों में तरसते उमर बिक गई
सर झुकाते झुकाते कमर झुक गई,
घूम तारे रहे रात की नाव में
आज है रतजगा प्यार के गाँव में
दो दिलों का मिलन है यहाँ का चलन
खुद न आया करो तो बुलाया करो,
नाचता प्यार है हुस्न की छाँव में
हाथ देकर न उँगली छुड़ाया करो.


 

2 टिप्‍पणियां:

Betuke Khyal ने कहा…

bahut dinon baad Gopal Singh Nepali ki rachna padhee hai... aap ko saadhuwaad

Shahroz ने कहा…

'धरोहर' के तहत प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता स्वर्गीय गोपालसिंह नेपाली जी का गीत पढ़कर बहुत अच्छा लगा..इसे प्रकाशित करने के लिए आभर.