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रविवार, 28 अक्तूबर 2012

रंग बिरंगी

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती अवनीश कुमार की एक कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
 
तुम-
 
गुलाबी हो
जैसे नवजात की नज़र

 
तुम-
 
हरी हो
जैसे नवेली वसंत की ऊष्मा

 
तुम-
 
नीली हो
जैसे बड़े परदे की बड़ी सी फिल्म
 
तुम-
 
उजली हो
जैसे हर रोज़ धुलती कमीज़
 
तुम-
 
नारंगी हो
जैसे छनती हुई रौशनी

 
तुम-
 
लाल हो
जैसे मध्य भारत की मिट्टी

 
तुम-
 
भूरी हो
जैसे शाम के वक़्त चौखट
 
रंग-बिरंगी हो
जैसे स्कूल से लौटी बच्ची
जैसे आंग्ल-भाषाई चपलता
जैसे हमारी बातचीत
 
-अवनीश
 
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अवनीश कुमार. लेखन-अध्ययन में रूचि . फ़िलहाल अपने ब्लॉग असहमति की कविता और सशब्द-विद्रोह के माध्यम से सक्रियता.

4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता..पढ़वाने का आभार..

Shahroz ने कहा…

रंग-बिरंगी हो
जैसे स्कूल से लौटी बच्ची
जैसे आंग्ल-भाषाई चपलता
जैसे हमारी बातचीत

..बहुत सुन्दर रचना...बधाई.

संगीता पुरी ने कहा…

वाह ..
बहुत सुंदर

KK Yadav ने कहा…

प्रेम की भाव-धरा पर अनुपम रचना..बधाई.