एक तरफ प्यार की अनुभूतियाँ हैं तो वहीँ इस प्यार का सौदा करने वाले भी पैदा हो गए हैं. रिश्ते-नाते-सम्बन्ध सभी कई बार जितने अछे लगते हैं, दूसरे ही क्षण वे बेगाने हो जाते हैं. कहीं पंचायतें प्यार का गला घोंट रहीं हैं तो कहीं आनर किलिंग के नाम पर प्यार की आवाज़ बंद कर दी जा रही है. कई बार तो प्रेम को मकड़जाल बनाकर अपने करीबी ही इसकी अस्मत लूट लेते हैं. ऐसे में डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी यदि कहते हैं कि सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं तो कई बार सच भी लगता है. इन्हीं भावों को लिए आज डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी की ये कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।
अनुबन्ध आज सारे, बाजार हो गये हैं।।
न वो प्यार चाहता है, न दुलार चाहता है,
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
सब टूटते बिखरते, परिवार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,
भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,
ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
वो सास से झगड़ती, ससुरे को डाँटती है,
घर की बहू किसी का, सुख-दुख न बाटँती है,
दशरथ, जनक से ज्यादा बेकार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं,
माँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं,
कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
****************************************************************************
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
जन्म- 4 फरवरी, 1951 (नजीबाबाद-उत्तरप्रदेश)
1975 से खटीमा (उत्तराखण्ड) में स्थायी निवास।
राजनीति- काँग्रेस सेवादल से राजनीति में कदम रखा।
केवल काँग्रेस से जुड़ाव रहा और नगर से लेकर
जिला तथा प्रदेश के विभिन्न पदों पर कार्य किया।
शिक्षा
- एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)
तकनीकी शिक्षाः आयुर्वेद स्नातक
सदस्य
- अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार,
(सन् 2005 से 2008 तक)
उच्चारण पत्रिका का सम्पादन
(सन् 1996 से 2004 तक)
साहित्यिक अभिरुचियाँ-
1965 से लिखना प्रारम्भ किया जो आज तक जारी है।
व्यवसाय- समस्त वात-रोगों की आयुर्वेदिक पद्धति से चिकित्सा करता हूँ।
1984 से खटीमा में निजी विद्यालय का संचालक/प्रबन्धक हूँ।
अंतर्जाल पर अपने मुख्य ब्लॉग उच्चारण के माध्यम से सक्रिय.
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
टनकपुर रोड, खटीमा,
ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड, भारत - 262308.
फोनः05943-250207, 09368499921, 09997996437
15 टिप्पणियां:
यथार्थ को स्पष्ट करती बहुत खूबसूरत रचना है
जीवित पिता से पुत्र, अब अधिकार चाहता है,
कितनी विडम्बना है....
जीवन के हाँसिये पर, घुट-घुट के जी रहे हैं,
माँ-बाप सहमे-सहमे, गम अपना पी रहे हैं,
कल तक जो पालते थे, अब भार हो गये हैं।
वृद्ध होते माँ बाप की पीड़ा को शब्द दिए हैं....
घूँघट की आड़ में से, दुल्हन का झाँक जाना,
भोजन परस के सबको, मनुहार से खिलाना,
ये दृश्य देखने अब, दुश्वार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
.......सुन्दर शब्दों में कड़वा सच ...लाजवाब !!
बढ़िया है...
आज के संबंधों पर करारी रचना..मयंक जी को बधाई.
मयंक जी ने तो बढ़िया विश्लेषण किया...लाजवाब कविता.
खूबसूरत भावाभिव्यक्ति...मयंक जी को बधाई !
वो सास से झगड़ती, ससुरे को डाँटती है,
घर की बहू किसी का, सुख-दुख न बाटँती है,
दशरथ, जनक से ज्यादा बेकार हो गये हैं।
सम्बन्ध आज सारे, व्यापार हो गये हैं।।
--
दशरथ, जनक से ज्यादा बेकार हो गये हैं।
--
इस पंक्ति को इस तरह पढ़ा जाये-
"दशरथ, जनक से ज्यादा लाचार हो गये हैं।"
--
मेरी रचना प्रकाशित करने के लिए
"सप्तरंगी प्रेम" की ब्लॉग स्वामिनी
"अभिलाषा" जी का आभार!
बहुत सही लिखा...हाल तो यही हैं.
मयंक जी की रचनात्मकता उम्र के साथ प्रौढ़ होती गई है. आखिरकार अनुभवों की चांदी जो साथ में है. यहाँ आपको पढना सुखद लगा...
अति उत्तम...लेखनी की धार बनाये रखें मयंक जी.
...): क्या कहें...दिल की बात जुबान पर उतार दी आपने.
बेहतरीन रचना..मयंक जी को साधुवाद.
....सुन्दर रचना !!
bahut achchi rachna.badhai
सही कहा
http://madhavrai.blogspot.com/
एक टिप्पणी भेजें