'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज रिश्तों में दुनिया की निगाहों के प्रति सचेत करती सुमन 'मीत' जी की एक कविता 'तुम्हें बदलना होगा'. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
जीवन की राहें
बहुत हैं पथरीली
तुम्हें गिर कर
फिर संभलना होगा ।
भ्रम की बाहें
बहुत हैं हठीली
छोड़ बन्धनों को
कुछ कर गुजरना होगा ।
दुनिया की निगाहें
बहुत हैं नोकीली
तुम्हें बचकर
आगे बढ़ना होगा ।
रिश्तों की हवाएँ
बहुत हैं जकड़ीली
छोड़ तृष्णा को
मुक्त हो जाना होगा ।
ऐ ‘मन’
तुम्हें बदलना होगा
बदलना होगा
बदलना होगा !!
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(सप्तरंगी प्रेम पर सुमन 'मीत' की अन्य रचनाओं के लिए क्लिक करें)
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग एक ऐसा मंच है, जहाँ हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं. रचनाएँ किसी भी विधा और शैली में हो सकती हैं. आप भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 2 मौलिक रचनाएँ, जीवन वृत्त, फोटोग्राफ kk_akanksha@yahoo.com पर भेज सकते हैं. रचनाएँ व जीवन वृत्त यूनिकोड फॉण्ट में ही हों.
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सोमवार, 25 अक्तूबर 2010
सोमवार, 18 अक्तूबर 2010
प्रथम प्रणय की उष्मा : नीरजा द्विवेदी
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती नीरजा द्विवेदी जी की कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
प्रथम प्रणय में जो ऊष्मा थी
और कहीं वह बात नहीं थी .
सुन प्रियतम पदचाप सिहरकर
कर्णपटों में सन-सन होती थी
स्वेद बिन्दु झलकते मुख पर
तीव्र हृदय की धडकन होती थी.
करतल आवृत्त मुखमन्डल पर
व्रीडा की अनुपम सुषमा थी.
लज्जा से थे जो लाल लजा के
कपोलों की न कोई उपमा थी.
विद्रुम से कोमल अधरों पर
मृदु-स्मिति छवि निखरी थी
प्रिय स्मृति में विहंस-विहंस
स्वयं सिमट कर सकुची थी.
प्रिय के प्रेम पगी दुल्हन में
प्रणय उर्मियों की तृष्णा थी.
वस्त्राभूषण सज्जित तन में
लावण्यमयी अद्भुत गरिमा थी.
निरख-निरख छवि दर्पण में
प्रमुदित-हर्षित होती थी.
स्वप्निल बंकिम चितवन में
प्रिय छवि प्रतिबिम्बित होती थी.
दो हृदयों के मौन क्षितिज पर
भावों की झंझा बहती थी.
प्रथम प्रणय में जो ऊष्मा थी
और कहीं वह बात नहीं थी.
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नामः नीरजा द्विवेदी/ शिक्षाः एम.ए.(इतिहास).वृत्तिः साहित्यकार एवं गीतकार. समाजोत्थान हेतु चिंतन एवं पारिवारिक समस्याओं के निवारण हेतु सक्रिय पहल कर अनेक परिवारों की समस्याओं का सफल निदान. सामाजिक एवं मानवीय सम्बंधों पर लेखन. ‘ज्ञान प्रसार संस्थान’ की अध्यक्ष एवं उसके तत्वावधान में निर्बल वर्ग के बच्चों हेतु निःशुल्क विद्यालय एवं पुस्तकालय का संचालन एवं शिक्षण कार्य.
प्रकाशन/ प्रसारण - कादम्बिनी, सरिता, मनोरमा, गृहशोभा, पुलिस पत्रिका, सुरभि समग्र आदि अनेकों पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित. भारत, ब्रिटेन एवं अमेरिका में कवि गोष्ठियों में काव्य पाठ, बी. बी. सी. एवं आकाशवाणी पर कविता/कहानी का पाठ। ‘
कैसेट जारी- गुनगुना उठे अधर’ नाम से गीतों का टी. सीरीज़ का कैसेट.
कृतियाँ- उपन्यास, कहानी, कविता, संस्मरण एवं शोध विधाओं पर आठ पुस्तकें प्रकाशित- दादी माँ का चेहरा, पटाक्षेप, मानस की धुंध(कहानी संग्रह,कालचक्र से परे (उपन्यास, गाती जीवन वीणा, गुनगुना उठे अधर (कविता संग्रह), निष्ठा के शिखर बिंदु (संस्मरण), अशरीरी संसार (साक्षात्कार आधारित शोध पुस्तक). प्रकाश्य पुस्तकः अमेरिका प्रवास के संस्मरण.
सम्मानः विदुषी रत्न-अखिल भारतीय ब्रज साहित्य संगम, मथुरा, गीत विभा- साहित्यानंद परिषद, खीरी, आथर्स गिल्ड आफ़ इंडिया- 2001, गढ़-गंगा शिखर सम्मान- अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन, भारत भारती- महाकोशल साहित्य एवं संस्कृति परिषद, जबलपुर, कलाश्री सम्मान, लखनऊ, महीयसी महादेवी वर्मा सम्मान- साहित्य प्रोत्साहन संस्थान लखनऊ, यू. पी. रत्न- आल इंडिया कान्फ़रेंस आफ़ इंटेलेक्चुअल्स, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान- सर्जना पुरस्कार.
अन्य- अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश पुलिस परिवार कल्याण समिति के रूप में उत्तर प्रदेश के पुलिसजन के कल्याणार्थ अतिश्लाघनीय कार्य. भारतीय लेखिका परिषद, लखनऊ एवं लेखिका संघ, दिल्ली की सक्रिय सदस्य.
संपर्क- 1/137, विवेकखंड, गोमतीनगर, लखनऊ. दूरभाषः 2304276 , neerjadewedy@yahoo.com
प्रथम प्रणय में जो ऊष्मा थी
और कहीं वह बात नहीं थी .
सुन प्रियतम पदचाप सिहरकर
कर्णपटों में सन-सन होती थी
स्वेद बिन्दु झलकते मुख पर
तीव्र हृदय की धडकन होती थी.
करतल आवृत्त मुखमन्डल पर
व्रीडा की अनुपम सुषमा थी.
लज्जा से थे जो लाल लजा के
कपोलों की न कोई उपमा थी.
विद्रुम से कोमल अधरों पर
मृदु-स्मिति छवि निखरी थी
प्रिय स्मृति में विहंस-विहंस
स्वयं सिमट कर सकुची थी.
प्रिय के प्रेम पगी दुल्हन में
प्रणय उर्मियों की तृष्णा थी.
वस्त्राभूषण सज्जित तन में
लावण्यमयी अद्भुत गरिमा थी.
निरख-निरख छवि दर्पण में
प्रमुदित-हर्षित होती थी.
स्वप्निल बंकिम चितवन में
प्रिय छवि प्रतिबिम्बित होती थी.
दो हृदयों के मौन क्षितिज पर
भावों की झंझा बहती थी.
प्रथम प्रणय में जो ऊष्मा थी
और कहीं वह बात नहीं थी.
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नामः नीरजा द्विवेदी/ शिक्षाः एम.ए.(इतिहास).वृत्तिः साहित्यकार एवं गीतकार. समाजोत्थान हेतु चिंतन एवं पारिवारिक समस्याओं के निवारण हेतु सक्रिय पहल कर अनेक परिवारों की समस्याओं का सफल निदान. सामाजिक एवं मानवीय सम्बंधों पर लेखन. ‘ज्ञान प्रसार संस्थान’ की अध्यक्ष एवं उसके तत्वावधान में निर्बल वर्ग के बच्चों हेतु निःशुल्क विद्यालय एवं पुस्तकालय का संचालन एवं शिक्षण कार्य.
प्रकाशन/ प्रसारण - कादम्बिनी, सरिता, मनोरमा, गृहशोभा, पुलिस पत्रिका, सुरभि समग्र आदि अनेकों पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित. भारत, ब्रिटेन एवं अमेरिका में कवि गोष्ठियों में काव्य पाठ, बी. बी. सी. एवं आकाशवाणी पर कविता/कहानी का पाठ। ‘
कैसेट जारी- गुनगुना उठे अधर’ नाम से गीतों का टी. सीरीज़ का कैसेट.
कृतियाँ- उपन्यास, कहानी, कविता, संस्मरण एवं शोध विधाओं पर आठ पुस्तकें प्रकाशित- दादी माँ का चेहरा, पटाक्षेप, मानस की धुंध(कहानी संग्रह,कालचक्र से परे (उपन्यास, गाती जीवन वीणा, गुनगुना उठे अधर (कविता संग्रह), निष्ठा के शिखर बिंदु (संस्मरण), अशरीरी संसार (साक्षात्कार आधारित शोध पुस्तक). प्रकाश्य पुस्तकः अमेरिका प्रवास के संस्मरण.
सम्मानः विदुषी रत्न-अखिल भारतीय ब्रज साहित्य संगम, मथुरा, गीत विभा- साहित्यानंद परिषद, खीरी, आथर्स गिल्ड आफ़ इंडिया- 2001, गढ़-गंगा शिखर सम्मान- अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन, भारत भारती- महाकोशल साहित्य एवं संस्कृति परिषद, जबलपुर, कलाश्री सम्मान, लखनऊ, महीयसी महादेवी वर्मा सम्मान- साहित्य प्रोत्साहन संस्थान लखनऊ, यू. पी. रत्न- आल इंडिया कान्फ़रेंस आफ़ इंटेलेक्चुअल्स, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान- सर्जना पुरस्कार.
अन्य- अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश पुलिस परिवार कल्याण समिति के रूप में उत्तर प्रदेश के पुलिसजन के कल्याणार्थ अतिश्लाघनीय कार्य. भारतीय लेखिका परिषद, लखनऊ एवं लेखिका संघ, दिल्ली की सक्रिय सदस्य.
संपर्क- 1/137, विवेकखंड, गोमतीनगर, लखनऊ. दूरभाषः 2304276 , neerjadewedy@yahoo.com
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नीरजा द्विवेदी
सोमवार, 11 अक्तूबर 2010
करीब आने तो दो..
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती अनामिका (सुनीता) जी की कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
अपनी बाहों के घेरे में, थोडा करीब आने तो दो.
सीने से लगा लो मुझे, थोडा करार पाने तो दो.
छुपा लो दामन में, छांव आंचल की तो दो .
सुलगते मेरे एह्सासो को, हमदर्दी की ठंडक तो दो.
दिवार-ए-दिल से चिपके दर्द को आंसुओं में ढलने तो दो .
शब्दों को जुबा बनने के लिए, जमी परतों को जरा पिघलने तो दो.
पलकों के साये में ले लो मुझे, स्पर्श में विलीन होने तो दो.
मासूम सी बन जाऊ मैं, अपनी गोद में गम भुलाने तो दो.
जिंदगी की तेज धूप से क्लांत हारा पथिक हू मैं ,
प्रेम सुधा बरसा के जरा, कराह्ती वेदनाओ को क्षीण होने तो दो !!
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(सप्तरंगी प्रेम पर अनामिका (सुनीता) जी की अन्य रचनाओं के लिए क्लिक करें)
अपनी बाहों के घेरे में, थोडा करीब आने तो दो.
सीने से लगा लो मुझे, थोडा करार पाने तो दो.
छुपा लो दामन में, छांव आंचल की तो दो .
सुलगते मेरे एह्सासो को, हमदर्दी की ठंडक तो दो.
दिवार-ए-दिल से चिपके दर्द को आंसुओं में ढलने तो दो .
शब्दों को जुबा बनने के लिए, जमी परतों को जरा पिघलने तो दो.
पलकों के साये में ले लो मुझे, स्पर्श में विलीन होने तो दो.
मासूम सी बन जाऊ मैं, अपनी गोद में गम भुलाने तो दो.
जिंदगी की तेज धूप से क्लांत हारा पथिक हू मैं ,
प्रेम सुधा बरसा के जरा, कराह्ती वेदनाओ को क्षीण होने तो दो !!
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अनामिका (सुनीता),
कवितायेँ
सोमवार, 4 अक्तूबर 2010
काम-धनु पर खिंची रति-प्रत्यंचा : महेश चंद्र द्विवेदी
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती पूर्व पुलिस महानिदेशक महेश चंद्र द्विवेदी जी की कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
मधुशाला में तो आज बंदी का दिन है,
और किसी मसखरे ने
ठंडई मॆं भंग भी नहीं घोली है;
फिर क्यूं आज सुरूर है ऐसा भरपूर
कि दो टांग की सीढी भी लगती है सलोनी
और लगती हर बनियाइन इक चोली है?
वृंदावन में गोपिकाऒं ने
माखन के मलौटे हैं सब खुले छोड़ दिये
कृष्ण हैं कि
आज उन्हें कानी आंख भी न देख रहे;
क्यूं उन्हें कदम्बों में भी दिखती है
बरसाने की राधा की सूरत भोली है?
चंहुदिश प्यार का कैसा प्रवाह है,
कि गौना तो गंगा का है,
पर छंगा को लगता अपना विवाह है;
पलंग पर लेटे
कल के जन्में छौने तक को,
अपना ही पालना लगता पत्नी की डोली है?
भ्रमर भरमाये हुए
क्यारियों में भटक रहे,
पुष्प की पंखुड़ियों में
पकड़ जाने को मटक रहे,
क्यूं उन्हें अप्रस्फुटित कली भी
लगती ज्यूं पूर्णतः परागरस घोली है?
बुढ़ऊ को भी क्यूं आज
साली-सलहज हैं लगती बड़ी प्यारी,
और वे भी बढ़चढ़कर
खांखर जीजा से कर रहीं हैं यारी;
छुटका देवर क्यूं हो गया दिवाना,
कि भौजी की डांट भी लगती ठिठोली है?
वसंत है बौराया हुआ
है छोड़ रहा अविरल अनंग-वाण,
ऐसी है उमंग और स्फूर्ति उनमें
कि मृत में भी भर दें प्राण;
कामधनु पर खिंची रति-प्रत्यंचा
उसने होली पर कब खोली है?
***********************************************************************************
नाम: महेश चंद्र द्विवेदी/जन्म-स्थान एवं जन्मतिथिः मानीकोठी, इटावा / 7 जुलाई, 1941/ शिक्षाः एम. एस. सी./भैतिकी/-लखनऊ विश्वविद्यालय /गोल्ड मेडलिस्ट/-एम. एस. सी./सोशल प्लानिंग/-लंदन स्कूल आफ़ इकोनोमिक्स- डिप्लोमा इन पब्लिक एडमिनिसट्रेशन- विशारद/. देश-विदेश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी और अंग्रेजी में विभिन्न विधाओं में रचनाओं का प्रकाशन और आकाशवाणी-दूरदर्शन इत्यादि पर प्रसारण. भारत सहित विदेशों में भी मंचों पर पाठ. रामायण ज्ञान केन्द्र, यू. के. /बर्मिंघम-2007 और विश्व हिंदी सम्मेलन, /न्यूयार्क-२००७ में भागीदारी. विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित- अलंकृत.कुल 7 पुस्तकें प्रकाशित और तीन प्रकाशनाधीन . प्रकाशित पुस्तकें- 1.उर्मि- उपन्यास 2.सर्जना के स्वर- कविता संग्रह 3.एक बौना मानव- कहानी संग्रह 4. सत्यबोध- कहानी संग्रह 5.क्लियर फ़ंडा- व्यंग्य संग्रह 6.भज्जी का जूता- व्यंग्य संग्रह 7. प्रिय अप्रिय प्रशासकीय प्रसंग- संस्मरण 8. अनजाने आकाश में- कविता संग्रह . प्रकाशनाधीन- 1.भीगे पंख- उपन्यास २. मानिला की योगिनी- उपन्यास 3.कहानी संग्रह. आई. पी. एस.- पुलिस महानिदेशक के पद से सेवानिवृत. सम्प्रति साहित्य और समाज सेवा में रत. डा. जितेंन्द्र कुमार सिंह ‘संजय’ द्वारा श्री महेश चंद्र द्विवेदी एवं उनकी पत्नी के साहित्य पर ‘साहित्यकार द्विवेदी दम्पति’ शीर्षक से पुस्तक प्रकाशित, एम. फ़िल, लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा कु.श्रुति शुक्ल द्वारा श्री महेश चंद्र द्विवेदी के साहित्य पर शोध. संपर्क :‘ज्ञान प्रसार संस्थान’, 1/137, विवेकखंड, गोमतीनगर, लखनऊ -226010 / फोनः 2304276 / 9415063030
ई मेलः maheshdewedy@yahoo.com
मधुशाला में तो आज बंदी का दिन है,
और किसी मसखरे ने
ठंडई मॆं भंग भी नहीं घोली है;
फिर क्यूं आज सुरूर है ऐसा भरपूर
कि दो टांग की सीढी भी लगती है सलोनी
और लगती हर बनियाइन इक चोली है?
वृंदावन में गोपिकाऒं ने
माखन के मलौटे हैं सब खुले छोड़ दिये
कृष्ण हैं कि
आज उन्हें कानी आंख भी न देख रहे;
क्यूं उन्हें कदम्बों में भी दिखती है
बरसाने की राधा की सूरत भोली है?
चंहुदिश प्यार का कैसा प्रवाह है,
कि गौना तो गंगा का है,
पर छंगा को लगता अपना विवाह है;
पलंग पर लेटे
कल के जन्में छौने तक को,
अपना ही पालना लगता पत्नी की डोली है?
भ्रमर भरमाये हुए
क्यारियों में भटक रहे,
पुष्प की पंखुड़ियों में
पकड़ जाने को मटक रहे,
क्यूं उन्हें अप्रस्फुटित कली भी
लगती ज्यूं पूर्णतः परागरस घोली है?
बुढ़ऊ को भी क्यूं आज
साली-सलहज हैं लगती बड़ी प्यारी,
और वे भी बढ़चढ़कर
खांखर जीजा से कर रहीं हैं यारी;
छुटका देवर क्यूं हो गया दिवाना,
कि भौजी की डांट भी लगती ठिठोली है?
वसंत है बौराया हुआ
है छोड़ रहा अविरल अनंग-वाण,
ऐसी है उमंग और स्फूर्ति उनमें
कि मृत में भी भर दें प्राण;
कामधनु पर खिंची रति-प्रत्यंचा
उसने होली पर कब खोली है?
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नाम: महेश चंद्र द्विवेदी/जन्म-स्थान एवं जन्मतिथिः मानीकोठी, इटावा / 7 जुलाई, 1941/ शिक्षाः एम. एस. सी./भैतिकी/-लखनऊ विश्वविद्यालय /गोल्ड मेडलिस्ट/-एम. एस. सी./सोशल प्लानिंग/-लंदन स्कूल आफ़ इकोनोमिक्स- डिप्लोमा इन पब्लिक एडमिनिसट्रेशन- विशारद/. देश-विदेश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी और अंग्रेजी में विभिन्न विधाओं में रचनाओं का प्रकाशन और आकाशवाणी-दूरदर्शन इत्यादि पर प्रसारण. भारत सहित विदेशों में भी मंचों पर पाठ. रामायण ज्ञान केन्द्र, यू. के. /बर्मिंघम-2007 और विश्व हिंदी सम्मेलन, /न्यूयार्क-२००७ में भागीदारी. विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित- अलंकृत.कुल 7 पुस्तकें प्रकाशित और तीन प्रकाशनाधीन . प्रकाशित पुस्तकें- 1.उर्मि- उपन्यास 2.सर्जना के स्वर- कविता संग्रह 3.एक बौना मानव- कहानी संग्रह 4. सत्यबोध- कहानी संग्रह 5.क्लियर फ़ंडा- व्यंग्य संग्रह 6.भज्जी का जूता- व्यंग्य संग्रह 7. प्रिय अप्रिय प्रशासकीय प्रसंग- संस्मरण 8. अनजाने आकाश में- कविता संग्रह . प्रकाशनाधीन- 1.भीगे पंख- उपन्यास २. मानिला की योगिनी- उपन्यास 3.कहानी संग्रह. आई. पी. एस.- पुलिस महानिदेशक के पद से सेवानिवृत. सम्प्रति साहित्य और समाज सेवा में रत. डा. जितेंन्द्र कुमार सिंह ‘संजय’ द्वारा श्री महेश चंद्र द्विवेदी एवं उनकी पत्नी के साहित्य पर ‘साहित्यकार द्विवेदी दम्पति’ शीर्षक से पुस्तक प्रकाशित, एम. फ़िल, लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा कु.श्रुति शुक्ल द्वारा श्री महेश चंद्र द्विवेदी के साहित्य पर शोध. संपर्क :‘ज्ञान प्रसार संस्थान’, 1/137, विवेकखंड, गोमतीनगर, लखनऊ -226010 / फोनः 2304276 / 9415063030
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