'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती नीरजा द्विवेदी जी की कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
प्रथम प्रणय में जो ऊष्मा थी
और कहीं वह बात नहीं थी .
सुन प्रियतम पदचाप सिहरकर
कर्णपटों में सन-सन होती थी
स्वेद बिन्दु झलकते मुख पर
तीव्र हृदय की धडकन होती थी.
करतल आवृत्त मुखमन्डल पर
व्रीडा की अनुपम सुषमा थी.
लज्जा से थे जो लाल लजा के
कपोलों की न कोई उपमा थी.
विद्रुम से कोमल अधरों पर
मृदु-स्मिति छवि निखरी थी
प्रिय स्मृति में विहंस-विहंस
स्वयं सिमट कर सकुची थी.
प्रिय के प्रेम पगी दुल्हन में
प्रणय उर्मियों की तृष्णा थी.
वस्त्राभूषण सज्जित तन में
लावण्यमयी अद्भुत गरिमा थी.
निरख-निरख छवि दर्पण में
प्रमुदित-हर्षित होती थी.
स्वप्निल बंकिम चितवन में
प्रिय छवि प्रतिबिम्बित होती थी.
दो हृदयों के मौन क्षितिज पर
भावों की झंझा बहती थी.
प्रथम प्रणय में जो ऊष्मा थी
और कहीं वह बात नहीं थी.
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नामः नीरजा द्विवेदी/ शिक्षाः एम.ए.(इतिहास).वृत्तिः साहित्यकार एवं गीतकार. समाजोत्थान हेतु चिंतन एवं पारिवारिक समस्याओं के निवारण हेतु सक्रिय पहल कर अनेक परिवारों की समस्याओं का सफल निदान. सामाजिक एवं मानवीय सम्बंधों पर लेखन. ‘ज्ञान प्रसार संस्थान’ की अध्यक्ष एवं उसके तत्वावधान में निर्बल वर्ग के बच्चों हेतु निःशुल्क विद्यालय एवं पुस्तकालय का संचालन एवं शिक्षण कार्य.
प्रकाशन/ प्रसारण - कादम्बिनी, सरिता, मनोरमा, गृहशोभा, पुलिस पत्रिका, सुरभि समग्र आदि अनेकों पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित. भारत, ब्रिटेन एवं अमेरिका में कवि गोष्ठियों में काव्य पाठ, बी. बी. सी. एवं आकाशवाणी पर कविता/कहानी का पाठ। ‘
कैसेट जारी- गुनगुना उठे अधर’ नाम से गीतों का टी. सीरीज़ का कैसेट.
कृतियाँ- उपन्यास, कहानी, कविता, संस्मरण एवं शोध विधाओं पर आठ पुस्तकें प्रकाशित- दादी माँ का चेहरा, पटाक्षेप, मानस की धुंध(कहानी संग्रह,कालचक्र से परे (उपन्यास, गाती जीवन वीणा, गुनगुना उठे अधर (कविता संग्रह), निष्ठा के शिखर बिंदु (संस्मरण), अशरीरी संसार (साक्षात्कार आधारित शोध पुस्तक). प्रकाश्य पुस्तकः अमेरिका प्रवास के संस्मरण.
सम्मानः विदुषी रत्न-अखिल भारतीय ब्रज साहित्य संगम, मथुरा, गीत विभा- साहित्यानंद परिषद, खीरी, आथर्स गिल्ड आफ़ इंडिया- 2001, गढ़-गंगा शिखर सम्मान- अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन, भारत भारती- महाकोशल साहित्य एवं संस्कृति परिषद, जबलपुर, कलाश्री सम्मान, लखनऊ, महीयसी महादेवी वर्मा सम्मान- साहित्य प्रोत्साहन संस्थान लखनऊ, यू. पी. रत्न- आल इंडिया कान्फ़रेंस आफ़ इंटेलेक्चुअल्स, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान- सर्जना पुरस्कार.
अन्य- अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश पुलिस परिवार कल्याण समिति के रूप में उत्तर प्रदेश के पुलिसजन के कल्याणार्थ अतिश्लाघनीय कार्य. भारतीय लेखिका परिषद, लखनऊ एवं लेखिका संघ, दिल्ली की सक्रिय सदस्य.
संपर्क- 1/137, विवेकखंड, गोमतीनगर, लखनऊ. दूरभाषः 2304276 , neerjadewedy@yahoo.com
18 टिप्पणियां:
निरख-निरख छवि दर्पण में
प्रमुदित-हर्षित होती थी.
स्वप्निल बंकिम चितवन में
प्रिय छवि प्रतिबिम्बित होती थी.
दो हृदयों के मौन क्षितिज पर
भावों की झंझा बहती थी.
प्रथम प्रणय में जो ऊष्मा थी
और कहीं वह बात नहीं थी.
आकांक्षा जी ,
.......
क्या कहूं...यह सुख जिन्हें सम्मुख कोणों में उपलब्ध हुआ है वे धन्य हैं...सीधी सरल रेखा वाले एककोणीय या अनुपस्थित कोणीय प्रणय वालों को भी अर्धांश तो मिलता ही है या होगा...तट पर बैठकर कुमुदिनी और कंवल की क्रीड़ा का आनंद भी दार्शनिक प्रणय है।....
कुलमिलाकर नीरजा द्विवेदी जी से मिलवाने के लिए आपका अशेष आभार
बहुत बढ़िया ....
bahut sundar kavita... aur Nirja Diwedi ke baare me jaan kar achha laga .. Abhaar
बहुत सुन्दर और भावमयी प्रस्तुति।
वाह,.. बहुत खूब...बहुत ही ख़ूबसूरत कविता...
नीरिजा जी से मिलवाने के लिए शुक्रिया..मेरे ब्लॉग पर इस बार..
ज़िन्दगी अधूरी है तुम्हारे बिना. ....
लज्जा से थे जो लाल लजा के
कपोलों की न कोई उपमा थी..
सहज सरल शब्दों में मनोभावों का खूबसूरत चित्रण और गेय रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़!
प्रेमानुभूति का सुंदर प्रस्फुटन।
प्रथम प्रणय का बहुत गहराई से सुंदर शब्दों में वर्णन
किया है |सुंदर शब्द चयन |बधाई
आशा
दो हृदयों के मौन क्षितिज पर
भावों की झंझा बहती थी.
प्रथम प्रणय में जो ऊष्मा थी
और कहीं वह बात नहीं थी.
बहुत ही भावपूर्ण संगीतमयी प्रस्तुति..
प्रथम प्रणय में जो ऊष्मा थी
और कहीं वह बात नहीं थी.
...बेहतरीन भी , सच भी...!!
@ DR. R. Ramkumar Ji,
धन्यवाद...हम तो सिर्फ एक कोशिश कर रहे हैं. आपके स्नेह के लिए आभारी हूँ.
.
sundar anubhav. !
aabhaar !
.
बहुत खूबसूरत भाव...बधाई.
काफी गहरी हिन्दी में कही बड़ी ही सुन्दरता से उकेरी पंक्ितयां।
परिचय सहित रचना पढ़ना अच्छा लगा! इसे बंद न करें...आकांक्षा जी! जारी रखें...तथास्तु॒!
बहुत बढ़िया भावमयी प्रस्तुति।
adbhut bhav
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