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सोमवार, 21 मार्च 2011

दिल क्यूँ चाहता है : अभिजीत शुक्ल

मैं जानता हूँ की ये सफ़र हमारा साथ कहीं छुड़ा देगा,


पर दिल क्यूँ चाहता है की तुम दो कदम साथ चलो?


मैं जानता हूँ सुबह का सूरज मुझे नींद से जगा देगा,


पर दिल क्यूँ चाहता है तुम इन आँखों में रात करो?


मैं जानता हूँ की प्यासा ही रह जाऊंगा मैं शायद,


पर दिल क्यूँ चाहता है तुम मेरी बरसात बनो?


मैं जानता हूँ अंत नहीं कोई इस सिलसिले का,


पर दिल क्यूँ चाहता है तुम इसकी शुरुआत करो !!
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नाम- अभिजीत शुक्ल
शिक्षा- B.Tech. (IT-BHU), PGDBM (XLRI)
वर्तमान शहर- जमशेदपुर
अंतर्जाल पर Reflections के माध्यम से सक्रियता.

3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन, आपकी शुरुआत, दूर तलक जायेगी।

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

सुन्दर सी कविता...मेरी भी बधाई.