'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती संगीता स्वरुप जी की कविता 'गुलमोहर'. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
याद है तुम्हें ?
एक दिन
अचानक आ कर
खड़े हो गए थे
मेरे सामने तुम
और पूछा था तुमने
कि - तुम्हें
गुलमोहर के फूल
पसंद हैं ?
तुम्हारा प्रश्न सुन
मैं स्वयं
पूरी की पूरी
प्रश्नचिह्न बन गयी थी ।
न गुलाब , न कमल
न मोगरा , न रजनीगंधा ।
पूछा भी तो क्या
गुलमोहर?
आँखों में तैरते
मेरे प्रश्न को
शायद तुमने
पढ़ लिया था
और मेरा हाथ पकड़
लगभग खींचते हुए से
ले गए थे
निकट के पार्क में ।
जहाँ बहुत से
गुलमोहर के पेड़ थे।
पेड़ फूलों से लदे थे
और वो फूल
ऐसे लग रहे थे मानो
नवब्याहता के
दहकते रुखसार हों ।
तुमने मुझे
बिठा दिया था
एक बेंच पर
जिसके नीचे भी
गुलमोहर के फूल
ऐसे बिछे हुए थे
मानो कि सुर्ख गलीचा हो।
मेरी तरफ देख
तुमने पूछा था
कि
कभी गुलमोहर का फूल
खाया है ?
मैं एकदम से
अचकचा गयी थी
और तुमने
पढ़ ली थी
मेरे चेहरे की भाषा ।
तुमने उचक कर
तोड़ लिया था
एक फूल
और उसकी
एक पंखुरी तोड़
थमा दी थी मुझे ।
और बाकी का फूल
तुम खा गए थे कचा-कच ।
मुस्कुरा कर
कहा था तुमने
कि - खा कर देखो ।
ना जाने क्या था
तुम्हारी आँखों में
कि
मैंने रख ली थी
मुंह में वो पंखुरी।
आज भी जब
आती है
तुम्हारी याद
तो
जीव्हा पर आ जाता है
खट्टा - मीठा सा
गुलमोहर का स्वाद।
(संगीता स्वरुप जी के जीवन-परिचय के लिए क्लिक करें)
22 टिप्पणियां:
अति सुंदर .... मोहक रचना
संगीता जी के रचनाओं से भलीभाँति परिचित हूँ...एक अमित छाप छोड़ जाती है आपकी कविताएँ...यह भी सुंदर...बधाई स्वीकारें..
गुलमोहर याद से किस तरह जुड़ गया ...
संगीताजी की कवितायेँ मुझे बहुत ही प्रिय हैं ...
आभार ..!!
गुल मोहर पर सुन्दर कविता है!
संगीता जी को बधाई!
ye nazm pahle bhi padhi hai na maine... :) kya solid nazm hai ...gulmohar ki pankhudiyaan bahut tasty lagti theen ... :) par is taste ke sath zabardast romance joda hai aapne mumma
मन की कोमल अनुभूतियों को गुलमोहर से जोड़ा है , कितने मोहक ढंग से प्रेम , प्रकृति और भावों के संतुलन को ढाला है. बस मान गए तुम्हारी कलम को.
संगीता बहुत बहुत अच्छी लगी ये कविता.
बहुत ही प्यारी ,रचना....पहले भी पढ़ी थी....इतना ही खुशनुमा अनुभव था
इस कविता को जितनी बार भी पड़ती हूँ लगता है आस पास ढेर सरे फूल खिल गए हों :).
भाव क्या हैं खाका ही खींच दिया है……………प्रेम के प्रगटीकरण का ये अन्दाज़ बहुत ही प्यारा लगा…………मनभावन रचना।
सुंदर रचना
बधाई!
इसे पढकर एक फ़िल्म जिसका नाम था एक-दूजे के लिए का वह दृश्य याद आ गया जब हिरोईन हीरो के पत्र को चाय में घोल कर पी जाती है। पर वहां विज़ुअल इफ़ेक्ट था, दृश्य सामने हो रहे थे ...
यहां...
माशाअल्लह!! क्या शब्दों की जादुगरी है, न सिर्फ़ परिस्थिति साकार हुई बल्कि अनुभुति भी।
आप सभी पाठकों का आभार...सुन्दर प्रतिक्रियाएं दे कर मेरा हौसला बढ़ाया ...
ye kavita aapne itni umda likhi he ki har shabd chalchitr ban kar ghatit hota hua sa prateet hota he.aur ise padh kar aanand aata he. itni sundar rachna k liye badhayi sweekar kare.
gulmohar....yani pyaar! kaise bhulen wo mithaas
प्यार का सुन्दर गुलमोहरी अहसास...बधाई.
बेहद खूबसूरत अहसास...संगीता जी को 'सप्तरंगी प्रेम' पर पुन: पढना सुखद लगा.
Beautifull Expressions..Congts.
संगीता जी की कविताओं में एक कशिश सी है, जो लोगों को अपनी ओर स्वत: आकर्षित कर लेती है. मनभावन कविता के लिए हार्दिक बधाई.
अले कित्ती प्यारी कविता..बधाई.
आप सभी का बहुत बहुत आभार
आज भी जब
आती है
तुम्हारी याद
तो
जीव्हा पर आ जाता है
खट्टा - मीठा सा
गुलमोहर का स्वाद।
बहुत ही भावपूर्ण याद भरी अभिब्यक्ति
हार्दिक बधाई
लगता है कि प्रेम की सारी सघनता
घनीभूत होकर इस कविता में समा गई है!
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सच्चे मन से रची गई एक सच्ची कविता!
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मन करता है कि इसे बार-बार पढ़ता रहूँ!
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