'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता कवि कुलवंत सिंह का गीत 'झंकृत'. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
झन - झन झंकृत हृदय आज है
वपु में बजते सभी साज हैं ।
पी आने का मिला भास है
मिटेगा चिर विछोह त्रास है ।
मंद - मंद मादक बयार है
खिल प्रकृति ने किया शृंगार है ।
आनन सरोज अति विलास है
कानन कुसुम मधु उल्लास है ।
अंग - अंग आतप शुमार है
देह नही उर कि पुकार है ।
दंभ, मान, धन सब विकार है
प्रेम ही जीवन आधार है ।
रोम - रोम रस, रुधित राग है
मिला जो तेरा अनुराग है ।
मन सुरभित, तन नित निखार है
नभ - मुक्त, तल नव विस्तार है ।
घन - घन घोर घटा अपार है
संग तुम मेरा अभिसार है ।
अनंत चेतना का निधान है
मिलन हमारा प्रभु विधान है ।
(कुलवंत सिंह जी के जीवन-परिचय के लिए क्लिक करें)
11 टिप्पणियां:
waah adbhut...
कुलवंत सिंह जी के गीत 'झंकृत' ने झंकृत किया ।
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग की उदारता वरेण्य है , वंदनीय है ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
रोम - रोम रस, रुधित राग है
मिला जो तेरा अनुराग है ।
मन सुरभित, तन नित निखार है
नभ - मुक्त, तल नव विस्तार है ।
बहुत ही भावपूर्ण अभिब्यक्ति
सप्रेम बधाई
बेहद भावभीनी रचना।
बहुत उम्दा!
दंभ, मान, धन सब विकार है
प्रेम ही जीवन आधार है ...
सुन्दर ...!!
घन - घन घोर घटा अपार है
संग तुम मेरा अभिसार है ।
अनंत चेतना का निधान है
मिलन हमारा प्रभु विधान है ।
....बहुत सुन्दर कविता...मुबारकवाद.
कुलवंत जी को इस सुन्दर रचना के लिए बधाई...
मुझे भी पसंद आई..बधाई.
मन के तारों को झंकृत कर गई कुलवंत जी की ये अनुपम रचना..बधाई.
मनभावन रचना ..बधाई !!
एक टिप्पणी भेजें