'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटता विनोद कुमार पांडेय जी का एक प्रेम-गीत. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,
चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|
यह न पूछो हुआ,
कब व कैसे कहाँ,
धड़कनों की गुज़ारिश थी,
मैं चल पड़ा,
बेड़ियाँ थी पड़ी,
ख्वाइसों पर बड़ी,
उल्फतों के मुहाने पे,
मैं था खड़ा,
कुछ न आया नज़र,
बस यहीं था लहर,
ढूढ़ लूँगा कही,
मैं कभी ना कभी,
इस ज़मीं पर नही,आसमाँ में सही,
बादलों के शहर में ठिकाना हुआ|
रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,
चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|
इश्क मजबूर था,
प्यार में चूर था,
जब हुआ था असर,
तब हुई ना खबर,
खामखाँ बीती रातें,
वो मोहब्बत की बातें,
कर रही थी पहल,
मन रहा था मचल,
हमनशीं,हमनवां,
क्या पता है कहाँ,
जो मिले गर सनम,
ए खुदा की कसम,
कह दूं सब कुछ बयाँ,
जो कभी मुझसे उस पल बयाँ ना हुआ|
रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,
चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|
सच कहूँ,अब लगा,
उसमे कुछ बात थी,
सूख सावन रहा,
जिसमे बरसात थी,
सोच में मैं रहा,
बेखुदी ने कहा,
जो थी दिल मे बसी,
चाँद सी थी हसीं,
क्या पता वो कहाँ,
चाँद का कारवाँ,
अब सजाती हो वो,
छुप के हौले से,
मुझको बुलाती हो वो,
जिसको देखे कसम से जमाना हुआ,
रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,
चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|
अब तो ये आस है,
एक विश्वास है,
वो छुपी हो भले,
चाँद तो पास है,
सोचकर आजकल,
साथ लेकर ग़ज़ल,
आसमाँ की गली,
रोज जाता हूँ मैं,
जिंदगी ख्वाब से,
अब बनाता हूँ मैं,
जिस हसीं ख्वाब से,दिल बहलता न था,
अब वहीं दिल्लगी का बहाना हुआ,
रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,
चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|
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(विनोद कुमार पाण्डेय जी के जीवन-परिचय के लिए क्लिक करें)
13 टिप्पणियां:
इस सुन्दर मखमली रचना के लिए
श्री विनोदकुमार पाण्डेय जी को साधुवाद!
रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,
चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ.....विनोद जी को
इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें....
jnaab aaat ke rishte men chaand kaa miln or rat ki khaani ki aapki munh zbaani bhut khub bdhai ho. akhta khan akela kota rajsthan
बेहतरीन विनोद..बधाई इस रचना के लिए,
विनोद जी, बढ़िया रचना रही जी ये तो ...
बहुत बढ़िया !!
रचना लम्बी जरुर है, पर ठिठक कर पढने को मजबूर कर देती है...बेहतरीन रचनाधर्मिता के लिए विनोद जी को बधाई.
आकांक्षा जी व अभिलाषा जी ....लगता है पूरे प्रेम की दुनिया को यहाँ उतारकर ही मानेंगीं. इस शानदार ब्लॉग के लिए साधुवाद.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
बहुत सुन्दर लिखा अंकल जी...खूबसूरत.
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'पाखी की दुनिया' में इस बार 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' !
nice
आप की इस रचना को शुक्रवार, 2/7/2010 के चर्चा मंच के लिए लिया जा रहा है.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
रात से मेरा रिश्ता पुराना हुआ,
चाँद के घर मेरा आना जाना हुआ|
...Kya bat hai, man prasann ho gaya padhkar.
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