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सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

काम-धनु पर खिंची रति-प्रत्यंचा : महेश चंद्र द्विवेदी

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती पूर्व पुलिस महानिदेशक महेश चंद्र द्विवेदी जी की कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

मधुशाला में तो आज बंदी का दिन है,
और किसी मसखरे ने
ठंडई मॆं भंग भी नहीं घोली है;
फिर क्यूं आज सुरूर है ऐसा भरपूर
कि दो टांग की सीढी भी लगती है सलोनी
और लगती हर बनियाइन इक चोली है?

वृंदावन में गोपिकाऒं ने
माखन के मलौटे हैं सब खुले छोड़ दिये
कृष्ण हैं कि
आज उन्हें कानी आंख भी न देख रहे;
क्यूं उन्हें कदम्बों में भी दिखती है
बरसाने की राधा की सूरत भोली है?

चंहुदिश प्यार का कैसा प्रवाह है,
कि गौना तो गंगा का है,
पर छंगा को लगता अपना विवाह है;
पलंग पर लेटे
कल के जन्में छौने तक को,
अपना ही पालना लगता पत्नी की डोली है?

भ्रमर भरमाये हुए
क्यारियों में भटक रहे,
पुष्प की पंखुड़ियों में
पकड़ जाने को मटक रहे,
क्यूं उन्हें अप्रस्फुटित कली भी
लगती ज्यूं पूर्णतः परागरस घोली है?

बुढ़ऊ को भी क्यूं आज
साली-सलहज हैं लगती बड़ी प्यारी,
और वे भी बढ़चढ़कर
खांखर जीजा से कर रहीं हैं यारी;
छुटका देवर क्यूं हो गया दिवाना,
कि भौजी की डांट भी लगती ठिठोली है?

वसंत है बौराया हुआ
है छोड़ रहा अविरल अनंग-वाण,
ऐसी है उमंग और स्फूर्ति उनमें
कि मृत में भी भर दें प्राण;
कामधनु पर खिंची रति-प्रत्यंचा
उसने होली पर कब खोली है?
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नाम: महेश चंद्र द्विवेदी/जन्म-स्थान एवं जन्मतिथिः मानीकोठी, इटावा / 7 जुलाई, 1941/ शिक्षाः एम. एस. सी./भैतिकी/-लखनऊ विश्वविद्यालय /गोल्ड मेडलिस्ट/-एम. एस. सी./सोशल प्लानिंग/-लंदन स्कूल आफ़ इकोनोमिक्स- डिप्लोमा इन पब्लिक एडमिनिसट्रेशन- विशारद/. देश-विदेश की विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी और अंग्रेजी में विभिन्न विधाओं में रचनाओं का प्रकाशन और आकाशवाणी-दूरदर्शन इत्यादि पर प्रसारण. भारत सहित विदेशों में भी मंचों पर पाठ. रामायण ज्ञान केन्द्र, यू. के. /बर्मिंघम-2007 और विश्व हिंदी सम्मेलन, /न्यूयार्क-२००७ में भागीदारी. विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित- अलंकृत.कुल 7 पुस्तकें प्रकाशित और तीन प्रकाशनाधीन . प्रकाशित पुस्तकें- 1.उर्मि- उपन्यास 2.सर्जना के स्वर- कविता संग्रह 3.एक बौना मानव- कहानी संग्रह 4. सत्यबोध- कहानी संग्रह 5.क्लियर फ़ंडा- व्यंग्य संग्रह 6.भज्जी का जूता- व्यंग्य संग्रह 7. प्रिय अप्रिय प्रशासकीय प्रसंग- संस्मरण 8. अनजाने आकाश में- कविता संग्रह . प्रकाशनाधीन- 1.भीगे पंख- उपन्यास २. मानिला की योगिनी- उपन्यास 3.कहानी संग्रह. आई. पी. एस.- पुलिस महानिदेशक के पद से सेवानिवृत. सम्प्रति साहित्य और समाज सेवा में रत. डा. जितेंन्द्र कुमार सिंह ‘संजय’ द्वारा श्री महेश चंद्र द्विवेदी एवं उनकी पत्नी के साहित्य पर ‘साहित्यकार द्विवेदी दम्पति’ शीर्षक से पुस्तक प्रकाशित, एम. फ़िल, लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा कु.श्रुति शुक्ल द्वारा श्री महेश चंद्र द्विवेदी के साहित्य पर शोध. संपर्क :‘ज्ञान प्रसार संस्थान’, 1/137, विवेकखंड, गोमतीनगर, लखनऊ -226010 / फोनः 2304276 / 9415063030
ई मेलः maheshdewedy@yahoo.com

13 टिप्‍पणियां:

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

ऐसी है उमंग और स्फूर्ति उनमें
कि मृत में भी भर दें प्राण;
कामधनु पर खिंची रति-प्रत्यंचा

....बहुत खूबसूरत कविता...महेश चन्द्र दिवेधी जी को हार्दिक बधाई.

shikha varshney ने कहा…

बहुत उम्दा रचना.महेश जी को हार्दिक बधाई.

vandana gupta ने कहा…

गज़ब का वेहतरीन लेखन है………………बधाई।

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

एक पुलिस अधिकारी इतना रोमांटिक भी हो सकता है....इस कविता का तो हमने प्रिंट-आउट निकालकर भी रख लिया...बधाई.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

एक पुलिस अधिकारी इतना रोमांटिक भी हो सकता है....इस कविता का तो हमने प्रिंट-आउट निकालकर भी रख लिया...बधाई.

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

Adarniya Mahesh ji ki itani behatareen rachna padhvane ke liye shubhkamnayen...Mahesh ji ko hardik badhai.
Poonam

raghav ने कहा…

पलंग पर लेटे
कल के जन्में छौने तक को,
अपना ही पालना लगता पत्नी की डोली है?

...Bahut khub.man bag-bag ho gaya padhkar..badhai.

शरद कुमार ने कहा…

छुटका देवर क्यूं हो गया दिवाना,
कि भौजी की डांट भी लगती ठिठोली है?

...Bura na mano holi hai.

शरद कुमार ने कहा…

नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

editor : guftgu ने कहा…

आकांक्षा जी ,
दिलचस्प कविता . सप्तरंगी-प्रेम पर आपका चयन काफी अच्छा होता है . आपकी हर पोस्ट लाजवाब होती है ..मुबारकवाद

Unknown ने कहा…

दिलचस्प,सप्तरंगी-प्रेम सप्तरंगी-प्रेम पर चयन लाजवाब

Unknown ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Dr.R.Ramkumar ने कहा…

वसंत है बौराया हुआ
है छोड़ रहा अविरल अनंग-वाण,
ऐसी है उमंग और स्फूर्ति उनमें
कि मृत में भी भर दें प्राण;
कामधनु पर खिंची रति-प्रत्यंचा
उसने होली पर कब खोली है?

sunder bhavabhivyakti.badhai!!