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मंगलवार, 25 मई 2010

ऐ सुनो !

'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती शिखा वार्ष्णेय जी की एक कविता. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...

सुनो! पहले जब तुम रूठ जाया करते थे न,
यूँ ही किसी बेकार सी बात पर
मैं भी बेहाल हो जाया करती थी
चैन ही नहीं आता था
मनाती फिरती थी तुम्हें
नए नए तरीके खोज के
कभी वेवजह करवट बदल कर
कभी भूख नहीं है, ये कह कर
अंत में राम बाण था मेरे पास
अचानक हाथ कट जाने का नाटक ..
तब तुम झट से मेरी उंगली
रख लेते थे अपने मुहँ में
और खिलखिला कर हंस पड़ती थी मैं..
फिर तुम भी झूठ मूठ का गुस्सा कर
ठहाका लगा दिया करते थे।
पर अब न जाने क्यों ....
.न तुम रुठते हो
न मैं मनाती हूँ
दोनों उलझे हैं
अपनी अपनी दिनचर्या में
शायद रिश्ते अब
परिपक्व हो गए हैं हमारे
आज फिर सब्जी काटते वक़्त
हाथ कट गया है
ऐ सुनो!
तुम आज फिर रूठ जाओ न
एक बार फिर
मनाने को जी करता है !!
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नाम- शिखा वार्ष्णेय / moscow state university से गोल्ड मैडल के साथ T V Journalism में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चेनेंल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया ,हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेजी ,और रुसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.वर्तमान में लन्दन में रहकर स्वतंत्र लेखन जारी है.अंतर्जाल पर स्पंदन (SPANDAN)के माध्यम से सक्रियता.

18 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो...........कुछ ऐसा ही कहने का दिल हुआ

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत शानदार!!

Shah Nawaz ने कहा…

"ऐ सुनो!
तुम आज फिर रूठ जाओ न
एक बार फिर
मनाने को जी करता है !!"


दिल को छू लेने वाली एक बेहतरीन रचना, बहुत खूब!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

शिखा वार्षणेय जी की रचना बहुत सुन्दर है!

kunwarji's ने कहा…

पढ़ते-पढ़ते ही मै तो घर चला गया था जी.....वो कुछ ख़ास से एहसास वही के वही थे आज भी....

बहुत बढ़िया.....

कुंवर जी,

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज फिर सब्जी काटते वक़्त
हाथ कट गया है
ऐ सुनो!
तुम आज फिर रूठ जाओ न
एक बार फिर
मनाने को जी करता है !!

बहुत कोमल भाव दर्शाती पंक्तियाँ....खूबसूरत अभिव्यक्ति

दिलीप ने कहा…

waah bhagti daudti zindagi me khoote rishton ki garmaahat ki kami...udgaar vyakt kiye hain aapne...waah bahut khoob...

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

तुम आज फिर रूठ जाओ न
एक बार फिर
मनाने को जी करता है !!

...अजी आपकी इन रोमांटिक पंक्तियों के आगे क्या कहें. दिल को छू गईं ये पंक्तियाँ..बधाई.

shikha varshney ने कहा…

आप सभी कि प्रतिक्रिया का दिल से आभार.
शुक्रिया अभिलाषा इस किता को यहाँ प्रकाशित करने के लिए :)

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुन्दर शब्दों से सजाया है एक सहज मन की अनुभूति को, रोज घटा करता है ऐसे ही, पर शांदोंशब्दों से श्रृंगार करके कौन रूप दे पता है? वही न जो अनुभूति रच जाता है.

दीपक 'मशाल' ने कहा…

कविता में भावों को सिर्फ उकेरा नहीं गया बल्कि ये सहज प्रतीत होता है कि लिखे गए भावों को दिल से और कलम से जिया भी गया है.. बेहतरीन सम्प्रेषण..

Ra ने कहा…

बहुर सुन्दर रचना .....सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ....आपके ब्लॉग पर पहली बार आया ...आकर अच्छा लगा .....शब्दों के इस सफ़र में आज से हम भी आपके साथ है

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

bahut hi bhavnatmak kavita hai badhai

Pawan Rajput ने कहा…

bhut khub rachna

बेनामी ने कहा…

खूबसूरत भाव लिए हुए कविता..शिखा वार्षणेय जी को बधाई.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

Suno!!


aapki kavitayen.......achchhi hain..:)

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

shikha di ki ye kavita pahle bhi padhi hai ....fir se padh kar achha laga

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...............