'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर आज प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती सुमन 'मीत' जी की एक कविता 'हसरत-ए-मंजिल'. आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा...
न मैं बदला
न तुम बदली
न ही बदली
हसरत-ए-मंजिल
फिर क्यूं कहते हैं सभी
कि बदला सा सब नज़र आता है
शमा छुपा देती है
शब-ए-गम के
अंधियारे को
वो समझते हैं
कि हम चिरागों के नशेमन में जिया करते हैं !
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(सुमन 'मीत' जी के जीवन-परिचय के लिए क्लिक करें)
18 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर!
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
बढिया प्रस्तुति .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !
भाई-बहिन के पावन पर्व रक्षा बन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/255.html
बहुत भावपूर्ण रचना .. आपको रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
Beautifull Expressions...congrts.
रक्षाबंधन-पर्व की शुभकामनायें.
शमा छुपा देती है
शब-ए-गम के
अंधियारे को
वो समझते हैं
कि हम चिरागों के नशेमन में जिया करते हैं...
वाह...बहुत खूब...
रक्षाबंधन पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.
बेहद सुन्दर प्रस्तुति...बधाई.
...रक्षाबंधन के त्यौहार पर आप सभी को बधाई और शुभकामनायें.
बहुत सुन्दर
kyun kahte hain, badla sa sab najar aata hai......:)
bahut khub!!!!
rakshha bandhan ki shubhkamnayen.......:)
pyaar or intizaar , tkraar kaa isse khubsurt sngm khaan milegaa bhn ji . rkshaa bndhn pr bdhaayi. akhtar khan akela kota rajsthan
बहुत खूब लिखा है आपने।
शमा छुपा देती है
शब-ए-गम के
अंधियारे को
वो समझते हैं
कि हम चिरागों के नशेमन में जिया करते हैं...
वाह...बहुत खूब...
बड़ी खूबसूरती से लिखा...मीत जी को बधाई.
बड़ी खूबसूरती से लिखा...मीत जी को बधाई.
आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया.............
सुंदर रचना और खूबसूरत भाव ..........
बहुत भावपूर्ण रचना .. मीत जी को बधाई.
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